एक बुद्धपुरुष का विवरण ही बचपन बुद्धों की जीवनी लिखी नहीं जा सकती, क्योंकि उनके जीवन के इतने रहस्यपूर्ण बेबूझ तल होते हैं कि वे सब उनके आचरण में प्रतिबिंबित नहीं हो सकते। जीवनी होती है कि सी भी व्यक्ति के आस-पास घटित हुई घटनाओं का दर्शन वेश, उन घटनाओं की व्याख्या। अब एक जाग्रत चेतना के आचरण की व्याख्या सो लोग कैसे करें। प्रबुद्ध पुरुषों की आत्मकथा यदि कोई लिख सकता है, तो वे स्वयं लेकिन वे लिखते नहीं क्योंकि उनके लिए उनका जीवन एक स्वप्न से अधिक कुछ नहीं है। उनके भीतर विराजमान समयातीत चेतना को समय के भीतर घटनाओं वाली छोटी-मोटी घटनाओं से कोई सरोकार नहीं। ओशो जैसे विद्रोही और आध्यात्मिक क्रांतिकारी को समझना और भी मुश्किल है। बचपन में उन्होंने जो कहानी में कहा कि एक मन में जीने वाला व्यक्ति करता है, तो उस पर शांति नहीं हो सकती थी, लेकिन जब जाग्रत उन्हें करता है, तो उसके मायने बिल्कुल बदल जाते हैं। इसे ध्यान में रखकर यह कि ताब पढ़ी जाए, तो ओशो के बचपन की झलकें हमें हमारा अपना जीवन समझने में मदद कर सकती हैं।
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