उत्साह और आस्था के साथ कई सीढ़ियाँ चढ़ी हैं और अब ऐसा समय आया है कि शायद आगे नहीं जा सकता। सँभलकर सीढ़ियाँ उतरना शुरू कर रहा हूँ और यह पुस्तक, एक तरह से, उसका साक्ष्य है।” वे कहते हैं कि सीढ़ियाँ उतरते हुए सँभलकर वे चल रहे हैं, पर इस पुस्तक का वैविध्य और विस्तृत रेंज पाठकों को हतप्रभ करता है। अच्छे ख़ासे साहित्यिक धावकों की साँसें उखड़ सकती हैं।
Add a review
Login to write a review.
Customer questions & answers