शिकारगाह - \nचर्चित कथाकार ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानियों में सामाजिक विडम्बनाओं के विभिन्न मंज़र उपस्थित रहते हैं। जटिल होते सम्बन्धों को वे अपनी संवेदनशील दृष्टि तथा नुकीली एकाग्रता से जाँचते-परखते हैं। पात्रों का द्वन्द्व और अकेले होते जाने की वेदना उनकी कहानियों को मार्मिक ही नहीं बनाती, अपितु भावनात्मक आरोह-अवरोह के साथ, प्रश्नाकुलता भी पैदा करती है। ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानियाँ बाज़ारवादी तन्त्र से संचालित होते नये समाज का अक्स और नक्श हैं। कहानियों के पात्र बेचैन और चिन्तातुर हैं तो इसलिए कि समाज इतना निस्संग और क्रूर क्यों होता जा रहा है। यही तनाव इन कहानियों में है।... सम्भवतः ये कहानियाँ, मनुष्य की गरिमा को बचाये रखने के मक़सद से लिखी गयी हैं। कहानियों की ख़ूबी इनकी विश्वसनीयता और भाषाई रवानी में है। सहज भाषा और शिल्प की प्रस्तुति तथा हृदय को गहराई तक छूनेवाली संवेदना ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानियों की एक अलग ही पहचान बनाती है।\n'शिकारगाह' संग्रह की ये कहानियाँ, आशा है पाठकों को रुचिकर लगेंगी।
ज्ञानप्रकाश विवेक - जन्म: 30 जनवरी, 1949, बहादुरगढ़, हरियाणा। प्रकाशित कृतियाँ: 'अलग-अलग दिशाएँ', 'जोसफ़ चला गया', 'शहर गवाह है', 'पिताजी चुप रहते हैं', 'उसकी ज़मीन' और 'इक्कीस कहानियाँ' (कहानी-संग्रह); 'धूप के हस्ताक्षर', 'आँखों में आसमान', 'इस मुश्किल वक़्त में' और 'गुफ़्तगू आवाम से है'(ग़ज़ल संग्रह); 'दरार से झाँकती रोशनी' (कविता संग्रह) और 'गली नम्बर तेरह' (उपन्यास)।
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