स्माइल प्लीज़ - \nसुधांशु की कहानियों में जो बात सबसे ज़्यादा आकर्षित करती है, वह है भावबोध की सघनता। बिना शब्दों, स्थितियों या घटनाओं की बहुलता के, थ्री डाइमेंशन में उकेरी गयी ये कहानियाँ पाठक से परत-दर-परत सोच और समझ की माँग करती हैं। स्माइल प्लीज़, .. और मैं भूल गया और मिसफिट जैसी कहानियाँ अवचेतन की कहानियाँ होने के बावजूद बाहरी दुनिया को देखने और समझने के रास्ते सुझाती हैं। इन कहानियों में परिवेश ही किरदार है। पाठक को इस परिवेश को समझना होगा, कहानियों को डीकोड करना होगा, तभी वह इन कहानियों को समझ पायेगा और इनका आनन्द उठा पायेगा। मैं सुधांशु को 'स्माइल प्लीज़' संग्रह के लिए बधाई और शुभकामनाएँ देती हूँ। उम्मीद करती हूँ कि इन कहानियों में भी पाठक को 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' जैसा स्वाद मिलेगा। —मृदुला गर्ग, वरिष्ठ कथाकार
सुधांशु गुप्त - 13 नवम्बर, 1962 में दिल्ली में जन्म। दिल्ली में ही पढ़ाई की और लगभग तीन दशक पत्रकारिता में गुज़ारने के बाद अब स्वतन्त्र लेखन। पत्रकारिता आजीविका रही और लेखन जीवन। सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित। अनेक कहानियों का रेडियो से प्रसारण। लगभग 50 क्षेत्रीय, हिन्दी और विदेशी भाषाओं के साहित्यिक उपन्यासों का रेडियो रूपान्तरण किया। वीडियो के लिए भी अनेक धारावाहिक लिखे। 'ख़ाली कॉफ़ी हाउस', 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' कहानी-संग्रह प्रकाशित लेखन उनके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन जीवन से बढ़कर नहीं। लेखक का मानना है कि लेखन उनके जीवन में एक पूरक का काम करता है। इसके बिना वे अधूरे हैं। पिछले साल प्रकाशित संग्रह की कहानियाँ लोगों को बहुत पसन्द आयी थीं। उम्मीद है कि इस संग्रह की कहानियाँ भी पाठकों को पसन्द आयेंगी।
सुधांशु गुप्तAdd a review
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