मंगलेश डबराल के छठे और नये काव्य-संग्रह ‘स्मृति एक दूसरा समय है’ में कई आवाजें हैं, लेकिन यह ख़ासतौर पर लक्षित किया जाएगा कि उसमें प्रखर राजनीतिक प्रतिरोध का स्वर भी है। बल्कि वही प्रमुख स्वर है और स्मृति उससे गहरे जुड़ी हुई है। पिछले कुछ बरसों में भारतीय लोकतंत्र जिस दुश्चक्र में घिर गया है उसमें सबसे अधिक चिंता की बात है कि लोकतांत्रिक ढाँचे की राज्य-सत्ता ही लोकतंत्र को लगातार कमज़ोर करने में लगी है। राज्य द्वारा संपोषित हिंसा न सिर्फ लोकतांत्रिक संस्थाओं और जनाकांक्षाओं का दमन कर रही है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की सबसे अहम विरासत आज़ादी और नागरिकों एवं नागरिकता को कुचलने पर आमादा है। उसने हमारे समाज में एक ‘नया डर’ पैदा किया है जो ‘रास्ते में किसी मोड़ पर किसी सभा में मिल सकता है/सुबह सैर पर निकलते हुए हत्यारे की गोली के रूप में/खाना खाते हुए हाथ के कौर और मुँह के बीच घुस सकता है’। संकटग्रस्त नागरिकता के इस दौर में मंगलेश डबराल की कविताएँ उस हर ताक़त का प्रतिपक्ष और कई बार विकल्प भी रचती हैं जो दमन और हिंसा का खेल खेलने में व्यस्त है। कवि यह रेखांकित करता है कि हम उस दौर में जी रहे हैं, जिसमें ताक़तवर को और भी ताक़त चाहिए’ और ‘आततायी छीन लेते हैं पूरी वर्णमाला’। वैश्विक स्तर पर और भारतीय समाज में भी यह भूलने का युग’ है, हालाँकि विस्मृति की यह प्रक्रिया स्वत: नहीं पैदा हुई है, बल्कि एक प्रायोजित कार्य व्यापार है जिसे बाजार और सत्ता की बर्बर ताक़तें संचालित कर रही हैं और वास्तविक इतिहास को भुलाने और एक फ़रेबी इतिहास रचने का उपक्रम किया जा रहा है। ऐसे में सहज मानवीय स्मृति की रक्षा और उसका पुनर्वास एक लोकतांत्रिक जरूरत है। एक कविता ‘मदर डेयरी’ डॉ. वर्गीज़ कूरियन को याद करती है जिन्होंने गुजरात के आणंद में सहकारिता के जरिये भारत को ‘सबसे ज़्यादा दूध पैदा करने वाले देश में बदल दिया। इस संग्रह में और भी कई स्मृतियाँ हैं; हिंदी कवि मुक्तिबोध और यायावर फ़ोटोग्राफर कमल जोशी की स्मृति, कवि के जन्मस्थल में खिड़की से बाहर आती पीले फूलों जैसी रोशनी, लोकगीतों में दुख के सुरीलेपन और कई भाषाओं की कविताओं से निर्मित एक काव्य-बागीचे की स्मृति, जो जर्मनी के एक छोटे से शहर आइस्लिगेन में जगह-जगह चित्रित है। स्मृतियाँ उन लोक-देवताओं की भी हैं जिनका अस्तित्व व्यक्तिगत क़िस्म का था’ और जो ‘सुंदर सर्वशक्तिमान संप्रभु स्वयंभू सशस्त्र देवताओं से अलग’ और लोगों के सुख-दुख के साथी थे, उनके नियंत्रक नहीं, इन सबको याद करना मौजूदा समय के बरक्स एक दूसरे समय’ को संभव करना है। मंगलेश डबराल स्मृति को कल्पना में बदलते हैं और कविता की ‘उच्चतर’ राजनीति को निर्मित करते हैं।
?????? ????? ?? ???? 16 ?? 1948 ?? ????????? ?? ????? ?????? ???? ?? ???? ???????? ??? ???? ?? ???? ??? ?? ????? ??????? ?? ????? ????????????? ??? ?????? ?? ??? ???? ??? ???? ???? ???????? ??????? ??? : ????? ?? ??????, ?? ?? ??????, ?? ?? ????? ???, ????? ?? ?? ??? ??, ??? ??? ??? ????? ?? ?????? ?? ????? ??? ?? (????? ??????); ???? ?? ???? ?? ??? ?? ??????? (???? ??????); ?? ??? ?????, ?? ???? ?? ??? (?????? ???????); ????? (???????????); ??? ?? ????? ????????? ??????? (???)? ?????? ????? ?? ??????? ??? ?? ????? ?? ??? ?????? ?????? ??? ?????? ??? ???? ???? ??????? ?? ????????? ?? ?????? ?????? ???????? ?? ??? ??? ?? ???????? ??? ???? ???????? ???-????? ??? ?? ?????????????????????? ????? ???????? ??? ?????-??? ???? ?? ?? ??????? ?? ????? ????????????? ?? ????????????? ???? ????????? ??? ?? ??? ???? ????????? ???????, ?????? ??????, ????????? ????????? ?? ????? ??????? ???? ?? ?????? ?????? ?? ?????? ?? ?????? ?? ????? ???????? ????????? ?????????? ??????? ??? ?? ??????? ? ?????????? ??? ??????? ??????????? ?????? ???? ???? ?? ????? ?????? ?? ???? ??? ?????? ??? ??????, ????? ???? ??????, ????? ?????? ?? ??????? ??????? ???????? ??????? ??? ???? ?????? : ?????? 2020
MANGLESH DABRALAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers