सॉरी दुलारी एक माँ की कहानी है जिसने औलाद पाने के लिए सात साल लंबा इंतज़ार किया। वह स्वयं बहुत धार्मिक है लेकिन उसका पति तर्क के अलावा न किसी धर्म को मानता है न भगवान को। दोनों में बहुत तकरार है फिर भी अथाह प्यार है। लंबे इंतज़ार के बाद उनके घर किलकारी गूँजती है, एक प्यारी-सी बच्ची पैदा होती है। लेकिन वह बच्ची सामाजिक मान्यताओं के आधार पर ‘नॉर्मल’ नहीं है। उस असाधारण बच्ची पर जब समाज की नज़र पड़ती है तो धर्म और ममता आमने-सामने आ जाते हैं। अत्यधिक धार्मिक समाज, मीडिया, सोशल मीडिया, क़ानून, परिवार और दोस्त इस माँ के लिए मुसीबत बढ़ाते हैं या उसके साथ खड़े होते हैं, यह आपको किताब पढ़कर पता चलेगा। काल्पनिक समय और शहर में बसी यह कहानी एक सामाजिक व्यंग्य है।
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