सूर्य की अन्तिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक - \nहिन्दी नाटक और रंगमंच का यह गौरव आलेख हिन्दी में तो प्रत्येक महत्त्वपूर्ण नाट्य केन्द्र में सफलता से प्रदर्शित हुआ ही है, साथ ही मराठी, कन्नड़, ओड़िया, मणिपुरी एवं तमिल में भी इसकी प्रस्तुतियों ने विशेष ख्याति पायी है।\nमिथकीय आधार पर कुछेक बहुत तीख़े समकालीन जीवनानुभव इस नाट्य-कृति में रेखांकित हुए हैं। यहाँ एक ओर समसामयिक स्तर पर परिवर्तनशील मूल्यों के सन्दर्भ में दाम्पत्य एवं यौन सम्बन्धों का गहरा और बारीक़ अन्वेषण है, तो दूसरी ओर शासक तथा शासन तन्त्र के आपसी रिश्ते का सार्थक विश्लेषण।\nसुगठित संरचना-शिल्प, कविता का आस्वाद देती ताज़ा, बेधक रंगभाषा द्वन्द्वाश्रित चरित्र-सृष्टि, परम्परागत मिथक की सामयिक व्याख्या और काम सम्बन्धों के कमनीय, उदात्त चित्रण की दृष्टि से यह रचना भारतीय नाट्य-साहित्य में अद्वितीय है।
सुरेन्द्र वर्मा - जन्म: 7 सितम्बर, 1941। शिक्षा: एम.ए. (भाषाविज्ञान)। अभिरुचियाँ: प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति रंगमंच तथा अन्तर्राष्ट्रीय सिनेमा में गहरी दिलचस्पी। कृतियाँ: 'तीन नाटक', 'सूर्य की अन्तिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक', 'आठवाँ सर्ग', 'शकुन्तला की अँगूठी', 'क़ैद-ए-हयात', 'रति का कंगन' (नाटक); 'नींद क्यों रात भर नहीं आती' (एकांकी); 'जहाँ बारिश न हो' (व्यंग्य); 'प्यार की बातें', 'कितना सुन्दर जोड़ा' (कहानी-संग्रह); 'अँधेरे से परे', 'मुझे चाँद चाहिए', 'दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता' और 'काटना शमी का वृक्ष पद्म पंखुरी की धार से' (उपन्यास)। सम्मान: संगीत नाटक अकादेमी और साहित्य अकादेमी द्वारा सम्मानित।
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