‘स्वतन्त्र होने का साहस करो, वहाँ तक जाने का साहस करो जहाँ तक विचार ले जाते हों, और उसे अपने जीवन में क्रियान्वित करने का साहस करो।’ - स्वामी विवेकानन्द\n\nआध्यात्मिक नेतृत्वकर्ता और समाज-सुधारक स्वामी विवेकानन्द, जिन्होंने हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में और उसका पश्चिमी दुनिया से परिचय कराने में केन्द्रीय भूमिका निभायी थी, वैश्विक स्तर पर लोगों के लिए प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। वे निर्भीक और सम्पूर्ण नेतृत्व की सफलता के प्रतीक थे, और उनकी शिक्षाओं तथा लेखन का अनेक प्रमुख नेतृत्वकर्ताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा था।\n\nइस पुस्तक के पृष्ठ इस महान आध्यात्मिक प्रतिभा की अन्तर्दृष्टियों से और उनके बारे में पुस्तक के लेखक के विचारों से भरे पड़े हैं। इस पुस्तक में व्यक्त की गयी शिक्षाओं को आत्मसात कीजिए, और आप देखेंगे कि हर चीज़ - अच्छे नेतृत्व की क्षमताएँ और असीमित निजी श्रेष्ठता से लेकर जीवन के हर पहलू में ख़ुशहाली - आपकी होगी।
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