तलघर - \nवक़्त के पाँव में निशानियों के जूते होते हैं। यह एक ऐसा तन्त्र है जहाँ झूठ की अगरबत्तियाँ जलाकर, सच्चाई का मर्सिया पढ़ा जाता है। नफ़े-नुक़सान का गणित करनेवाले बहुत अच्छे दुनियादार तो होते हैं, बहुत अच्छे नागरिक नहीं। रिश्ते भी काग़ज़ के फूलों जैसे हो चुके हैं, न रखने को दिल करता है, न फेंकने को। उसकी हँसी जितनी ज़्यादा बेमतलब थी, उतने ज़्यादा सवाल पैदा करती थी, पता नहीं, वो हँसी थी या वक्तव्य! आख़िर में बचता भी क्या है, सम्बन्धों की बूढ़ी कथाएँ और स्मृतियों का समृद्ध आख्यान!\nज़िन्दगी सिर्फ़ एक बार मिलती है और अमूमन उसे 'रफ़ ड्राफ़्ट' की तरह जिया जाता है।\nअलविदा— जैसे कोई लफ़्ज़ न हो, कैंची हो, रिश्तों के थान को चीरती हुई।\nएक दिन ऐसा आता है जब आपकी मेज़ पर कोई फ़ाइल नहीं होती, कोई ऑफ़िसर आपके नाम नोट नहीं लिखता, अटैंडेंस रजिस्टर से नाम हट जाता है और फिर कुलीग के ज़ेहन से भी आपका नाम हट जाता है। ...मौत से पहले की ये छोटी-छोटी मौतें होती हैं।
ज्ञानप्रकाश विवेक - जन्म: 30 जनवरी, 1949। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी)। प्रकाशित कृतियाँ: 'अलग अलग दिशाएँ', 'जोसफ़ चला गया', 'शहर गवाह है', 'उसकी ज़मीन', 'पिताजी चुप रहते हैं', 'इक्कीस कहानियाँ', 'शिकारगाह', 'सेवानगर कहाँ है' तथा 'मुसाफ़िरखाना' (कहानी संग्रह); 'गली नम्बर तेरह', 'अस्तित्व', 'दिल्ली दरवाज़ा', 'आखेट' और 'चाय का दूसरा कप' (उपन्यास); 'धूप के हस्ताक्षर', 'आँखों में आसमान', 'इस मुश्किल वक़्त में' तथा 'गुफ़्तगू अवाम से है' (ग़ज़ल संग्रह); 'दरार से झाँकती रोशनी' (कविता-संग्रह) तथा 'हिन्दी ग़जल की विकास यात्रा' (आलोचना)। सम्मान: राजस्थान पत्रिका द्वारा सर्वश्रेष्ठ कथा पुरस्कार, हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा कृति पुरस्कार तथा बाबू बालमुकुन्द गुप्त सम्मान।
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