उपन्यास की भाषा इसकी रोचकता और संवेदना दोनों का विस्तार करता है। उपन्यासकार ने ट्रांसजेण्डरों की भाषा, उसकी शैली को यथारूप रखा है। उनके अपने शब्द हैं, अपने शब्दकोश। उसका सामान्यीकरण या साधारणीकरण करने का प्रयास नहीं किया है। ट्रांसजेण्डरों द्वारा प्रयुक्त शब्द उनके प्रति समझ का विस्तार करते हैं। अपनी भाषा और अपने कथावस्तु के आधार पर जया जादवानी द्वारा लिखित यह उपन्यास निश्चित रूप से पठनीय है।
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