तन्द्रालोक का प्रहरी - \nइतिहास में धर्म के नाम पर बहुत अन्याय और नृशंसता होने के बावजूद धर्म की भित्ति या मर्म जिस तरह से असत्य नहीं है, वैसे ही टोना-टोटका के नाम से होने वाली प्रवंचना और कुसंस्कार से समाज के पीड़ित होने के बावजूद इन सबका उत्स भी क्षणिक नहीं है। हमारे स्थूल इन्द्रियानुभूत जगत के बाहर (या इसके साथ ओतप्रोत रहकर) चेतना के अनेक स्तर, अनेक वास्तविकताएँ हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि ये सब आधिभौतिक (supernatural) हैं पर इन सबके साथ आध्यात्मिकता का कोई सम्बन्ध नहीं।\n'तन्द्रालोक का प्रहरी' में लेखक उक्त दो विपरीत धुरियों के बीच तनी रस्सी पर किसी नट की भाँति सन्तुलन दिखाता है। यहाँ न पुराने का तिरस्कार है और न नये की अवांछित सिफ़ारिश।\nमनोरोग चिकित्सा के सन्धान से पूर्व ओझा-गुनियों की तीन पीढ़ियों का दस्तावेज़ी इतिहास है——'तन्द्रालोक का प्रहरी'। यह अनुवाद प्रवहमान और ओड़िया का स्वाद अक्षुण्ण रखते हुए भी हिन्दी की मूल कृति का सा आनन्द देता है।
मनोज दास - सन् 1934 में बालेश्वर जनपद के एक गाँव संकरी (ओडिशा) में जन्म । प्रमुख कृतियाँ - अमृत फल, आकासर इशारा, तन्द्रालोक का प्रहरी, प्रभंजन, गोधूलिर बाघ (उपन्यास); शेष बसन्तर चिट्ठी, आरण्यक, लक्ष्मीर अभिसार, अरण्य उल्लास (कहानी); तुम गाँ ओ अन्यान्य कविता, कविता उत्कल (कविता); दूर दिगन्त, अदूर भारत (यात्रा-संस्मरण) आदि। सम्मान-पुरस्कार : पद्मश्री, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, ओड़िशा साहित्य अकादेमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता। (अनुवादक) सुजाता शिवेन - जन्म: 1962, सम्बलपुर (ओडिशा) में। बिपिन बिहारी मिश्र, ए. के. मिश्र, इन्दुलता महान्ती, फनी महान्ती आदि ओड़िया के कई रचनाकारों की कृतियों का हिन्दी में अनुवाद ।
मनोज दास अनुवाद सुजाता शिवेनAdd a review
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