दिव्या विजय की कहानियाँ आधुनिक मानवीय बोध की कहानियाँ हैं जिनकी भाषा दैनन्दिन जीवन से ली गयी है। मनुष्यता में अगाध विश्वास उनकी कहानियों का अंडरटोन है। समकालीन युवा कहानीकारों में स्पष्ट दृष्टि और प्रखर रचनात्मक बोध के साथ दिव्या हमारे बीच उपस्थित हैं। आलोचकों और पाठकों की नज़ उनके लेखन को पैना और परिपक्व बनायेगी, दिव्या के लेखन की ओर से आँखें मूँदकर हम समकालीन हिन्दी कहानी का इतिहास मुक़म्मल कर पायेंगे मुझे इसमें सन्देह है।
<p>दिव्या विजय जन्म : 20 नवम्बर, 1984 समकालीन लेखन में कथा-साहित्य का चर्चित व समर्थ हस्ताक्षर। बचपन अलवर में बीता। भाषा अध्यापिका माँ व कवि नाना के सान्निध्य में लेखन का माहौल मिला। बायोटेक्नोलॉजी से स्नातक, सेल्स एंड मार्केटिंग में एम.बी.ए., ड्रामेटिक्स से स्नातकोत्तर। पहला कहानी-संग्रह अलगोज़े की धुन पर। दूसरा कहानी-संग्रह सगबग मन। तीसरी पुस्तक डायरी दराज़ों में बन्द ज़िन्दगी। हिन्दी साहित्य की मूर्धन्य पत्रिकाओं 'कथादेश', 'हंस', 'नया ज्ञानोदय' आदि में कहानी लेखन। प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और अग्रणी वेबसाइट्स के लिए सृजनात्मक लेखन। अन्धा नटी बिनोदिनी, किंग लियर आदि नाटकों में अभिनय । रेडियो नाटकों में स्वर अभिनय व लेखन। ‘मैन्युस्क्रिप्ट कॉन्टेस्ट, मुम्बई लिट-ओ-फ़ेस्ट' - 2017 से सम्मानित। अलगोज़े की धुन पर के लिए 2019 का ‘स्पन्दन कृति सम्मान' । सगबग मन के लिए 2020 का ‘कृष्ण प्रताप कथा सम्मान'। सगबग मन के लिए 2023 का 'जानकीपुल शशिभूषण द्विवेदी सम्मान'। सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन।</p>
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