तुम मुझसे फिर मिलना - \nनिवेदिता छोटे-छोटे विषयों को उठाती है और समय की पड़ताल करते हुए आगे बढ़ती है। उनका बचपन छोटानागपुर (झारखण्ड) में बीता है तभी उनकी कविताओं में बसंत, जंगल, राँची, पलाश, आदिवासी शब्द बार-बार आते हैं। उनकी कविता का संसार लगता है हमारा अपना संसार ही है जहाँ हम हैं, हमारी बातें हैं। निवेदिता रचनारत होते हुए एक पीड़ा निरन्तर महसूस करती है जिसे अचानक बैचेन हो, वो कह उठती है—'बसंत कोई नया नहीं है/मैंने तो हर क्षण याद किया/प्रेम सबके हिस्से में आता है' और उनकी कविताओं में वो परिलक्षित भी होता है। मगर प्रेम की कविता सहज मन से लिखी गयी हैं कोमल-सी ये कविताएँ मन को भाती हैं और इनकी कविताओं से गुज़रते हुए मुझे महसूस होता है कि समकालीन हिन्दी कविता में निश्चय ही ये अपना दख़ल देंगी और ख़ूब पढ़ी भी जायेंगी ये मेरा यकीं भी है और विश्वास भी।—नरेन्द्र पुंडरीक
निवेदिता झा - शिक्षा: पत्रकारिता एंव मनोविज्ञान (एम.ए.), राँची विश्वविद्यालय विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि। प्रकाशन 4 पुस्तकें हिन्दी में (क्योंकि नीरा मेरी माँ है, मैं एक नदी हूँ, देवदार के आँसू, जंगल और मैं। तीन मैथिली पुस्तक, 11 साँझा संग्रह। पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, आकाशवाणी, दूरदर्शन से सम्बद्ध, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ, लेख प्रकाशित। जीवन आस्था एनजीओ, हिन्दी मैथिली में विभिन्न सम्मान प्राप्त। भारत गौरव, राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड, अमृता प्रीतम ग्रेट आईकन अवार्ड, श्यामाप्रसाद मुखर्जी अवार्ड, आगमन साहित्य कविकुंभ अवार्ड, ज्योत्सना सम्मान, सफ़ी आरा सहित कई अन्य पुरस्कार व सम्मान।
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