हम सबके जीवन में एक ‘प्रियम’ जरूर होता/ होती है। जिसके साथ रहकर या बात करने मात्र से ही हमको पता चल जाता है कि वो हमसे कितना प्यार करता है। वो ‘प्रियम’ कोई भी हो सकता है हमारे माँ-बाप, कोई दोस्त या वो रिश्ते जो अनकहे रह गए या जिन्हें शब्दों के जाल में नहीं फँसा पाते हैं। जब भी प्यार का नाम आता है हम उसे दो भागों में बाँटने की कोशिश करते हैं, शादी से पहले का प्यार जिसमें सभी युगल जोड़े एक-दूसरे के साथ भविष्य की कल्पना करते हैं या फिर शादी के बाद का प्यार जिसमें हम एक-दूसरे का साथ देने की कसमें-वादे निभाते हैं। पर कभी उन रिश्तों के प्यार को समझने की कोशिश ही नहीं करते जो हमको बस प्यार करते हैं। बिना किसी भविष्य की कल्पना किए, जो बस हमारा साथ देते हैं। वो तब भी आपके जीवन में परछाईं बनकर खड़े होते हैं जब आपके अपने समझे जाने वाले लोग मुझेहाँह मोड़ देते हैं। अगर आपको भी यह लगता है कि रिश्ता टूटने से प्यार नहीं खत्म होता या खून के रिश्तों से बड़ा प्यार का रिश्ता होता है तो यकीनन यह किताब आपकी सोच का ही एक आईना है।.
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