Udarikaran Ka Chyavanprash

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हमारे कर्जदाताओं को हमारी नीतियों की आलोचना करने का अवसर मिल गया। उनके अध्ययन दलों ने हमारी औद्योगिक नीति को ठोका-बजाया और उसे दोषपूर्ण करार दिया। हमारी अर्थव्यवस्था को बारीकी से जाँचा-परखा और उसे बीमारी की ओर अग्रसर बतलाया। कहा कि यह मूलतः कठोर नियंत्रण का ही दुष्परिणाम था कि अर्थव्यवस्था पनप नहीं पाई, उद्योग अपने पाँवों पर खडे़ नहीं हो पाए। उन्होंने सलाह दी कि हम नियंत्रण की जगह उदारता से काम लें और अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिए उदारीकरण के च्यवनप्राश का सेवन करें। शर्तिया लाभ होगा। मुझे यह सलाह कई नागवार गुजरी। उदारता का पाठ भला हमें कोई क्या पढ़ाएगा! इतिहास गवाह है कि हम आदिकाल से (अथवा अनादि काल से जो भी सही हो) ही इस कदर उदार रहे हैं कि यदि सपने में भी किसी को कुछ देने का वचन दे दें तो जागने पर बाकायदा उसे खोजकर हम वह वस्तु उसे सौंप देते हैं। ‘अतिथिदेवो भव’ की भावना हम पर इतनी हावी रही कि हम सदियों तक खिलजियों, लोदियों, मुगलों और अंग्रेजों द्वारा शासित रहे। लाखों याचक हमारी उदारता के चलते ही अपना पेट पालते हैं। फिर यह कैसे हो सकता है कि हम औद्योगिक क्षेत्र में उदार होने से चूक गए हों?.

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Shikhar Jain

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