आधी-अधूरी ख़्वाहिशों की दास्तान है ज़िंदगी, मुकम्मल जहान तो बस कहानियों में हासिल है . . . ऐसी ही एक अधूरी दास्तान बंद लबों मेंपिरोए फिरती है माहिरा और मनन की ज़िंदगी, जिसमेंमोती हैं—हैं मोहब्बत के इज़हार के, इकरार के, तकरार के . . . आख़िर यह दास्तान आधी-अधूरी क्यों रह गई? देरदे रात एक टॉल, हैंडहैंसम छवि बॉनफायर के दूसदू री तरफ सेनज़र आई, और सोढ़ी के मुँह सेनिकल गया, ‘ओ, चौरसिया!’ आख़िरकार माहिरा का दो दशकों सेभी लंबा बेपनाह इंतज़ार ख़त्म हुआ . . . और फिर शुरूशु हुआ सवालों-जवाबों का, शिकवे-गिलों का सिलसिला। वैसेमनन को इल्म था कि उसनेजो किया वह क़ाबिल-ए-माफ़ी नहीं फिर भी जवाब तो उसेदेना दे ही था, आख़िर माहिरा इसकी हकदार थी। लेकिन क्या था जवाब और क्या रहा उनका भविष्य? जाननेके लिए पढ़ें,ढ़ें अमिता ठाकुर की कलम सेनिकला हिंदी हिं पाठकों के लिए उनका पहला उपन्या स जो जज़्बातों के चक्रव्यूह मेंफंसाता है,है निकालता है और पाठक को आख़िरी शब्द तक बांधेभी रखता है।है
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Amita Thakur DograAdd a review
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