Ugra Ka Parishisht

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उग्र' का परिशिष्ट - \nपांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' अपने समय के न केवल महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रान्ति पैदा कर देने वाले एक आवश्यक हस्तक्षेप भी हैं। समालोचकों ने उन्हें सामुद्रिक दृष्टि का लेखक कहा है, अर्थात् समाज की सिर से पैर तक की रेखाएँ देखकर उसकी भावी बनावट पर सशक्त एवं पैनी लेखनी चलाने में माहिर। दूसरे शब्दों में, वे अपने समय के बृहत्तर सामाजिक एवं राष्ट्रीय आन्दोलन के सृजेता रहे हैं। उनके समय की शायद ही कोई समस्या रही हो जो उनकी क़लम की ज़द से बच गयी हो।\nदो खण्डों में नियोजित इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में उग्र के संस्मरण हैं, जिनके केन्द्र में है साहित्य-संस्कृति और पत्रकारिता को एक विशेष ऊँचाई प्रदान करनेवाला पत्र 'मतवाला' और उसे प्रमाणित करने के लिए उसके इर्द-गिर्द के सन्दर्भ। इस संस्मरण भाग में विशेषतः बाहरी 'उग्र' की अपेक्षा भीतरी 'उग्र' को, या कहें कि उनके गोपित मन को जानने-समझने का प्रयास है। पुस्तक के दूसरे खण्ड में कुछ ऐसी दुर्लभ रचनाएँ हैं जो अबतक अज्ञात या अल्पज्ञात और असंकलित रही हैं। इसमें उनकी कहानियाँ, निबन्ध, लेख-अग्रलेख, सम्पादकीय और पत्र साहित्य सम्मिलित हैं।\n'उग्र' ने छद्म नामों से भी बहुत कुछ लिखा है। इस ग्रन्थ में 'उग्र' द्वारा छद्म नाम से लिखी केवल उन्हीं रचनाओं को संकलित किया गया है जिनके ठोस प्रमाण मिल सके हैं।\nइन संस्मरणों और विविध विधाओं की दुर्लभ रचनाओं के संकलन से अभी तक अज्ञात 'उग्र' के पक्ष-प्रतिपक्ष को तो जाना ही जा सकता है, इसके माध्यम से उनके रचना वैविध्य और प्रातिभ को भी परखा जा सकता है। सन्देह नहीं कि यह संकलन हमारे आज के समय में भी एक सशक्त हस्तक्षेप दर्ज कराने में समर्थ है।

भवदेव पांडेय - जन्म: मई, 1924 (भसमा, गोरखपुर)। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी.। प्रकाशन: अँधेर नगरी-समीक्षा की नयी दृष्टि (1995), अन्धा युग-अधुनातन समीक्षा-दृष्टि (1995), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-नये परिदृश्य (1997), बंग महिला-नारी मुक्ति का संघर्ष (1999), पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' (2001), आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना के नये मानदण्ड (2003), हिन्दी कहानी का पहला दशक (2006)। पुरस्कार/सम्मान: विद्या वाचस्पति (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा-1996), अज्ञेय पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ-1997)।

भवदेव पाण्डेय

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