उजाड़ में परिन्दे - \nगीतकार नईम ने गीत (नवगीत) के पूरे रसायन को इस तरह परिवर्तित किया कि उनके हस्तक्षेप को गीत-विधा के इतिहास में बार-बार रेखांकित किया गया। 'उजाड़ में परिन्दे' नईम की रचनाशीलता का एक और गीतात्मक सोपान है। नईम गीत की अन्तर्वस्तु में रिश्तों की समकालीन व्याकरण, सियासत की सर्वग्रासी छाया, उपयोगितावाद की ऊलजुलूल ऊहापोह, व्यर्थता बोध के विवरण, प्रतिरोध के दृढ़ निश्चय, महानगरों की माया और आत्मालोचन आदि को सम्मिलित करते हैं। विषय वैविध्य और अभिव्यक्ति का सधाव नईम को उनके समकालीन कवियों में विशिष्ट बनाता है।\n'उजाड़ में परिन्दे' यथार्थ को शब्दांकित करने के साथ-साथ उज्ज्वल जिजीविषा के स्वर भी सुरक्षित करता है। नईम की यह शब्द स्मृति कितनी मूल्यवान है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
नईम - कवि, मूर्तिकार और शिक्षाविद्। जन्म: 1 अप्रैल, 1935, ग्राम-फ़तेहपुर (हटा), दमोह (मध्य प्रदेश)। शिक्षा: हिन्दी साहित्य में एम.ए.। प्रकाशित कृतियाँ: 'पथराई आँखें' (कविता, ग़ज़ल, सॉनेट्स तथा गीत), 'बातों ही बातों में' (कुछ चुने हुए गीत), 'पहला दिन मेरे आषाढ़ का' (गीत संकलन), 'लिख सकूँ तो—'(गीत और कुछ काष्ठशिल्पों की छायाकृतियाँ)। पुरस्कार-सम्मान: म.प्र. साहित्य परिषद से 'दुष्यन्त कुमार पुरस्कार', 'मधुवन' भोपाल द्वारा 'श्रेष्ठ कला आचार्य पुरस्कार', उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान' तथा देश की अन्यान्य कला-संस्थाओं से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त। देहावसान: 9 अप्रैल, 2009।
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