वर:मिहिर - \nआचार्य वर:मिहिर ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के महान वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ रहे हैं। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वर:मिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। उनके कार्यों की एक झलक समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दी-शापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास को बोझिल न बनाने के उद्देश्य से गणितीय गणनाओं का समावेश नहीं है, परन्तु यत्र-तत्र उनकी गणितीय उपलब्धियों की ओर इंगित किया गया है। वर:मिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वर:मिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है। ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के महान भारतीय गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक वर:मिहिर के गौरवशाली व्यक्तित्व-कृतित्व को औपन्यासिक शिल्प में प्रस्तुत करती एक महत्त्वपूर्ण कृति। भारत के प्रसिद्ध विवेक-सम्पुष्ट और स्वाभिमान-सम्मत अतीत का एक ऐसा आख्यान जो तार्किकता और हार्दिकता का अत्यन्त पठनीय संगम है।
डॉ. घनश्याम पाण्डेय - प्रारम्भ से ही गणित में गहन अभिरुचि। सन् 1960 में सागर विश्वविद्यालय से एम.एससी. (गणित) तथा 1963 में जेकोबी श्रेणी की अभिसारिता एवं संकलनीयता पर गहन शोध करके विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएच.डी. एवं 1968 में डी.एससी. की उपाधि प्राप्त की। हंगेरियन विज्ञान अकादमी, बुडापेस्ट में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर, फुलब्राइट फ़ेलो (नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी, शिकागो, यू.एस.ए.) तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (राष्ट्रपति निवास, शिमला) के फ़ेलो रहे हैं। 15 वर्ष गणित विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में आचार्य एवं अध्यक्ष तथा 6 वर्ष तक भारतीय गणित इतिहास परिषद के अध्यक्ष रहे। गणित की प्रसिद्ध जर्मन पत्रिका 'Zentralblatt fur Mathematik' (Berlin) में शोध-पत्रों के समीक्षक तथा 10 वर्ष तक 'Vikram Mathematical Journal' के सम्पादक रहे हैं। देश-विदेश की लब्धप्रतिष्ठ शोध-पत्रिकाओं में लगभग 64 शोध-पत्र तथा उच्च गणित पर 5 पुस्तकें प्रकाशित। एक अन्य पुस्तक Acharya Varahmihira & Development of Mathematics' भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशनाधीन। 'वर:मिहिर' (उपन्यास) हिन्दी साहित्य में लेखक की प्रथम कृति ।
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