प्रख्यात कथाकार नरेन्द्र कोहली का उपन्यास ‘वसुदेव’ चरम जिजीविषा की कथा है। जो कष्ट देवकी और वसुदेव ने सहे, संसार के इतिहास में उनकी कोई तुलना नहीं। स्वयं बन्दियों का जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने अपने छः-छः पुत्रों की हत्या होते हुए देखी। परिवार, समाज, शासन अथवा राज्य के बाहर कहीं से भी किसी प्रकार की सहायता की कोई सम्भावना दिखाई नहीं दे रही थी, किन्तु उनकी संघर्ष की ऊर्जा समाप्त नहीं हुई। कंस उनके साहस को पराजित नहीं कर सका। अपने सातवें पुत्र को इतने अद्भुत ढंग से बचा ले गए, जिसे हमारी कथाओं में योगमाया की लीला ही माना जा सका। भक्ति के धरातल पर आस्था की यह कथा ही राजनीति के धरातल पर एक अत्यन्त दुष्ट और शक्तिशाली शासक के विरुद्ध स्वतंत्रता के संघर्ष की गाथा है। वसुदेव के आरम्भिक संघर्ष के पश्चात् इस युद्ध को स्वयं कृष्ण लड़ते हैं और गोकुल से आरम्भ कर, मथुरा और द्वारका से होते हुए, कुरुक्षेत्र तक वे राक्षसों का वध करते हैं|\n
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