वरिष्ठ पत्रकार वंदना मिश्र की कविताओं से गुज़रना अनुभूति की सघनता से होकर गुज़रने जैसा है। खोजी पत्रकारिता वाली उनकी नज़र इन कविताओं को अद्भुत काव्य दृष्टि प्रदान करती है जिसमें जीवन के सूक्ष्मातिसूक्ष्म संवेदन को सहज ही देखा जा सकता है। इन कविताओं को 'भाषा में घटित होता हुआ जीवन' कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। कुछ कविताओं में तो प्रत्यक्ष लगता है मानो 'जीवन' स्वयं भाषा के जल में अपना प्रतिबिम्ब देख रहा हो।\nवंदना जी ने अपने कविकर्म को सामाजिक सरोकारों की कसौटी पर बार-बार कसा है, इसलिए इन कविताओं में शब्द की गरिमा और काव्यानुभूति की ऊर्जा की अपूर्व छटा स्पष्ट देखने को मिलती है। इन कविताओं में अर्थ की गहनता तो है किन्तु ऐसा नहीं कि वह पाठक को किसी रहस्यमय पाताल की गहराई में ले जाकर डुबो दे। सहज, सरल, सामान्य जीवनानुभवों के माध्यम से संघर्ष और जीवन की सुन्दरता को रेखांकित करती हुई इन कविताओं में, पिटे-पिटाए मुहावरों और चतुर वाग्जाल से बचते हुए, कवि ने एक नयी कहन और काव्यभाषा का सूत्रपात किया है। हिन्दी कविता की वर्तमान एकरूपता और रूढ़ि से हटकर एक नये क़िस्म का आस्वाद इन कविताओं की विशेषता है।\nसबके मन की बात कह देने वाली वंदना मिश्र की ये कविताएँ अग-जग की बात बतकही की ही कविताएँ हैं ।\nनिश्चित ही इस कविता संग्रह के पाठ का अनुभव हिन्दी पाठकों की संवेदना और चेतना को नयी ऊर्जा से समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।\n\n-दिनेश कुमार शुक्ल
वंदना मिश्र जन्म : 27 नवम्बर 1949, लखनऊ। शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स (संस्कृत), एम.ए. (पालि - प्राकृत) और डी. एफ. ए. (डिप्लोमा इन फॉरेन अफेयर्स) करने के बाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (नयी दिल्ली) से अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में एम.फिल. । शोध कार्य करते हुए ही मैकमिलन के हिन्दी विभाग में पहले 'ग्रन्थ सम्पादक' और फिर 'सम्पादक' रहीं। लखनऊ आने के बाद पत्रकारिता का पेशा चुना। पहले 'नवभारत टाइम्स' और फिर 'दैनिक जागरण' में लगभग बीस वर्ष पत्रकारिता के बाद स्वतन्त्र लेखन। कुछ गम्भीर पुस्तकों का अनुवाद भी किया, जिनमें प्रमुख हैं : प्रो. ए. आर. देसाई : 'रीसेंट ट्रेंड्स इन इंडियन नेशनलिज्म' (भारतीय राष्ट्रवाद की अधुनातन प्रवृत्तियाँ), प्रो. श्यामाचरण दुबे : 'इंडियन सोसायटी' (भारतीय समाज), हेराल्ड लास्की : 'राइज ऑफ़ यूरोपियन लिबरलिज़्म' (यूरोपीय उदारवाद का उदय), सी. मेतलार्त और ए. मेतलात : 'थियरीज़ ऑफ़ कम्यूनिकेशन' (संचार के सिद्धान्त), टाम वॉटमोर 'क्लासेज़ इन मॉडर्न 'सोसायटी' (आधुनिक समाज में वर्ग), प्रो. लीला दुबे : 'ऐंथ्रोपोलाजिकल एक्सप्लोरेशंस इन जेंडर' (लिंगभाव का मानववैज्ञानिक अन्वेषण), हरबर्ट आई. शिलर : 'द माइंड मैनेजर्स' (बुद्धि के व्यवस्थापक) तथा 'रिक्लेमिंग पब्लिक वाटर' (लेके रहेंगे अपना पानी) । अखिलेश मिश्र की कुछ महत्त्वपूर्ण और चर्चित पुस्तकों का सम्पादन भी किया, जिनमें प्रमुख हैं: 'धर्म का मर्म, 'पत्रकारिता : मिशन से मीडिया तक', '1857 अवध का मुक्ति संग्राम' तथा 'प्रसाद का जीवन दर्शन' । विदेश यात्राएँ : सोवियत संघ, सूरीनाम, हालैंड, बेल्जियम, फ्रांस, नेपाल । सम्प्रति महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की प्रकाशन योजना के लिए गठित कोर ग्रुप की प्रमुख, लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता तथा जनसंचार विभाग में अतिथि व्याख्याता तथा उत्तर प्रदेश लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़, उत्तर प्रदेश) की महासचिव । पता : 3/66, पत्रकारपुरम, विनयखंड, गोमतीनगर, लखनऊ ।
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