विपश्यना - कौन हूँ? क्यों हूँ? मुझे क्या चाहिए? जीवन में सुख की परिभाषा क्या है? 'विपश्यना' अपने भीतर के प्रकाश में बाहर के विश्व को देखना है—ये विशेष प्रकार से देखना, ये जीना, ये सत्य के अभ्यास; यही उपन्यास की तलाश है, यही तलाश लेखिका की भी! उपन्यास में दो नायिकाएँ हैं— दोनों ही अपने को नये सिरे से खोजने निकली है। एक को अपने को पाना है तो दूसरी को भी आख़िर अपने तक ही पहुँचना है, भले ही रास्ता माँ को खोजने का हो। पूरा उपन्यास, माँ के लिए तरसता एक मन है; क्या कीजिये कि जहाँ सबसे ज़्यादा कुछ निजी था, कुछ बहुत गोपनीय, वहीं से उपन्यास आरम्भ हुआ। लिखते समय, लेखिका पात्रों के साथ इस कथा-यात्रा में सहयात्री बनती है, मार्गदर्शक नहीं। इस उपन्यास में भोपाल गैस त्रासदी जितना कुछ है; उतनी विराट मानवीय त्रासदी को महसूस करना, अपने मनुष्य होने को फिर से महसूस करने के जैसा है। जो जीवन बोध था, जो दुःख था, जो प्रश्न थे अब 'विपश्यना' आपके हाथों में है।
इन्दिरा दाँगी - जन्म: 13 फ़रवरी, 1980 (दतिया, मध्य प्रदेश)। शिक्षा: एम. ए. (हिन्दी साहित्य)। प्रकाशित पुस्तकें: कहानी-संग्रह—बारहसिंघा का भूत, एक सौ पचास प्रेमिकाएँ, शुक्रिया इमरान साहब; उपन्यास—हवेली सनातनपुर, रपटीले राजपथ; नाटक—रानी कमलापति, आचार्य। अनुवाद: कहानियों का अंग्रेज़ी, नेपाली, उर्दू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, ओड़िया, सन्थाली, मराठी आदि कुल 11 भाषाओं में अनुवाद। मंचन: नाटकों का देश-विदेश में मंचन। पुरस्कार/सम्मान: रामजी महाजन राज्य सेवा पुरस्कार (म.प्र. शासन) 2010, वागीश्वरी सम्मान (हिन्दी साहित्य सम्मलेन) 2013, कलमकार पुरस्कार 2014, रमाकांत स्मृति पुरस्कार 2014, बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार (म.प्र. शासन) 2014, ज्ञानपीठ नवलेखन अनुशंसा पुरस्कार (भारतीय ज्ञानपीठ) 2014, साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार (साहित्य अकादेमी) 2015, दुष्यंत कुमार स्मृति पुरस्कार 2015, मोहन राकेश नाट्य अनुशंसा पुरस्कार (दिल्ली सरकार) 2017, युवा कहानीकार पुरस्कार 2017 ( राजस्थान पत्रिका) एवं अन्य कई पुरस्कार। देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित। आकाशवाणी के लिए 15 वर्षों तक पटकथा लेखन।
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