व्यक्ति के जीवन के मुख्यतः छह पड़ाव होते हैं—शिशु, बालक, किशोर, युवा, प्रौढ़ एवं वृद्ध। इन्हीं अवस्थाओं में व्यक्तित्व का निर्माण और विकास होता है। व्यक्तित्व-निर्माण में अनेक अवरोध आते हैं। हर अवस्था की अपनी एक क्षमता, संभावनाएँ एवं सीमाएँ होती हैं। हर व्यक्ति की दो तसवीरें होती हैं—धवल और धूमिल। चरित्र के कुछ विशेष गुणों के कारण ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अंतर मालूम पड़ता है। जिस किसी के भी जीवन में अच्छाई, सदाचार, विनम्रता, सच्चाई एवं विश्वसनीयता होगी, उसका प्रभाव सब पर अवश्य होगा। ऐसा व्यक्ति ही रचनात्मक तथा सकारात्मक कार्य कर सकता है। जो व्यक्ति इन गुणों से युक्त होगा, उसमें नैतिकता अपने आप आ जाएगी। प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न क्षेत्रों के अनुकरणीय व्यक्तित्वों का दिग्दर्शन भी कराया गया है, ताकि किशोर एवं युवा उनके जीवन-अनुभवों से लाभ उठाएँ और उन्हें अपना आदर्श मानकर अपने जीवन को उज्ज्वल बनाएँ तथा आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करें। आशा है, यह व्यावहारिक एवं वस्तुपरक पुस्तक सभी आयु वर्ग के लोगों को पसंद आएगी और उनके व्यक्तित्व-निर्माण में सहायक सिद्ध होगी।.
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