व्यंग्य और हास्य नाटक - बंगला का अपना रंगमंच है, मराठी का अपना तथा गुज़राती का अपना । अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी रंगमंच पर्याप्त मात्रा विकसित हैं। एक हिन्दी क्षेत्र ही ऐसा अभागा है, जिसके पास अपना रंगमंच कहने को कुछ नहीं है। इधर हिन्दी के अल्प-विकसित अव्यावसायिक रंगमंच में क्षेत्रीय भाषाओं के सफल नाटकों की बाढ़-सी आयी है, जिनको मंचित करने में हिन्दी -निर्देशक एक-दूसरे से होड़ ले रहे हैं, तथा गर्व अनुभव करते हैं। यह भी अन्ततः हिन्दी नाटक-लेखन के लिए अहितकर है। भय है कि क्षेत्रीय भाषाओं की नाटक-लेखन की समृद्ध परम्परा के विशाल वृक्ष की छाया में हिन्दी नाटक का सुकुमार नव अंकुर सूख ही न जाए।\n\nहिन्दी रंगमंचीय एकांकी की स्थिति भी अच्छी नहीं है। पिछले वर्षों में अधिकतर ध्वनि-एकांकी रेडियो के लिए लिखे गये हैं। कारण स्पष्ट है । रेडियो से ध्वनि - एकांकियों की माँग रही है, जिसमें पारिश्रमिक भुगतान (कितना ही कम क्यों न हो) तुरन्त है। इसके विरुद्ध न तो रंगमंच से एकांकी की माँग थी, और न उससे किसी प्रकार के पारिश्रमिक प्राप्त होने की आशा । इसलिए स्वभावतः रंगमंचीय एकांकी नहीं लिखे गये। कुछ प्रतिष्ठित लेखकों ने अपने रेडियो-रूपक हेर-फेर करके रंगमंचीय एकांकियों के रूप में प्रकाशित करवा दिये। किन्तु वे प्रेक्षकों में सफल नहीं हो सके। बाह्य रूप परिवर्तन करने पर भी रेडियो नाटक मंच पर सफल नहीं हो सकता, क्योंकि उसकी मूल-कल्पना श्रव्य-नाटक के रूप में होती है, जो मंचीय आवश्यकताओं से भिन्न ही नहीं, सर्वथा विरोधी होती है। मंच पर वही नाटक सफल हो सकता है, जो प्रेक्षक वर्ग के लिए लिखा गया हो, तथा जिसकी मूल- कल्पना मंचीय दृश्य-नाटक के रूप में की गयी हो ।\n\nप्रस्तुत संग्रह में संकलित एकांकी मूलतः रंगमंच के लिए लिखे गये हैं तथा रंगमंच पर सफलतापूर्वक अभिनीत भी हो चुके हैं। इससे आशा है कि यह संग्रह रंगमंचीय हिन्दी-एकांकी के अभाव की पूर्ति में अपना विनम्र योगदान प्रदान करेगा।\n\n- दया प्रकाश सिन्हा
दया प्रकाश सिन्हा – हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ नाटककार दया प्रकाश सिन्हा की रंगमंच के प्रति बहुआयामी प्रतिबद्धता है। पिछले चालीस वर्षों में अभिनेता, नाटककार, निर्देशक, नाट्य-अध्येता के रूप में भारतीय रंगविधा को उन्होंने विशिष्ट योगदान दिया है। दया प्रकाश सिन्हा अपने नाटकों के प्रकाशन के पूर्व स्वयं उनको निर्देशित करके संशोधित /संवर्धित करते हैं। इसलिए उनके नाटक साहित्यगत / कलागत मूल्यों को सुरक्षित रखते हुए मंचीय भी होते हैं।दया प्रकाश सिन्हा के प्रकाशित नाटक हैं-मन के भँवर, इतिहास चक्र, ओह अमेरिका, मेरे भाई : मेरे दोस्त, कथा एक कंस की, सादर आपका, सीढ़ियाँ, अपने अपने दाँव, साँझ-सवेरा, पंचतंत्र लघुनाटक (बाल नाटक), हास्य एकांकी (संग्रह), इतिहास, दुस्मन, रक्त-अभिषेक तथा सम्राट अशोक।दया प्रकाश सिन्हा नाटक-लेखन के लिए केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी, नयी दिल्ली के राष्ट्रीय ‘अकादमी अवार्ड', उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के 'अकादमी पुरस्कार', हिन्दी अकादमी, दिल्ली के 'साहित्य सम्मान', उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के 'साहित्य भूषण' एवं 'लोहिया सम्मान', भुवनेश्वर शोध संस्थान के भुवनेश्वर सम्मान, आदर्श कला संगम, मुरादाबाद के फ़िदा हुसैन नरसी पुरस्कार', डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल स्मृति फाउंडेशन के 'डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल स्मृति सम्मान तथा नाट्यायन, ग्वालियर के 'भवभूति पुरस्कार' से विभूषित हो चुके हैं।नाट्य-लेखन के अतिरिक्त दया प्रकाश सिन्हा की रुचि लोक कला, ललित कला, पुरातत्त्व, इतिहास और समसामयिक राजनीति में भी है।दया प्रकाश सिन्हा आई. ए. एस. से अवकाश प्राप्ति के पश्चात् स्वतन्त्र लेखन और रंगमंच से सम्बद्ध हैं।
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