‘वार सत्रह बार’ एक राजा की कहानी है। किसी एक राजा की नहीं, बस ‘एक राजा’ की कहानी। वही कहानी जिसको सुनने की हमारी भूख बचपन में रह गई थी। यानी स्वयं की वो कल्पना जिसे करते-करते हम बचपन में कहानी पूरी होने से पहले ही सो जाते थे। वक़्त के साथ वो कल्पना ओझल हो गई और उस राजा की तलाश हम किसी और तरह से करने लगे। या यूँ कहें कि किसी और तरह से अपने भीतर एक विजेता तलाशने लगे। विजयी होने के संस्कार हमारे इर्द-गिर्द ही मौजूद हैं, लेकिन शायद उन्हें अभी तक एक सूत्र में समेटने का प्रयास नहीं किया गया था। ‘वार सत्रह बार’ वही सूत्र है। वीर रस से परिपूर्ण सत्रह कविताओं का गुलदस्ता जो मिलकर एक ‘काव्य-कहानी’ का रूप ले लेता है। आज का काव्य। नए युग का काव्य। जो एक ऐसे राजा के नज़रिये से जीवन को देख रहा है जो सोलह बार हारने के बाद सत्रहवीं बार वार की तैयारी कर रहा है। हमारा निजी संघर्ष भी तो उसी राजा के संघर्ष जैसा ही है न! लेकिन सत्रह वार ही क्यों? इसका जवाब तो आपको इस किताब में मिलेगा।
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Kunal HridayAdd a review
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