अनिल यादव की यात्रा कृति 'वह भी कोई देस है महराज' को पढ़ते हुए और उसके जिक्र से मेरा रक्तचाप बदल जाता है। मेरा मन उसको तरह-तरह से विज्ञापित करने का होता है। महान पूर्वज यात्रियों के वृत्तांत और संवाद पढ़ते हुए मैं अनिल की इस कृति पर आकर ठिठक गया हूँ। लेखक पथ का दावेदार नहीं है, वह जीवनदायी अन्वेषण करता है। पूर्वोत्तर को घनीभूत-मूलभूत उद्घाटित करते हुए अनिल यादव ने हिन्दी के पाठकों को एक वृहत्तर भारत देखने वाली नज़र दी है। पूर्वोत्तर देश का उपेक्षित और अर्धज्ञात हिस्सा है, उसको महज सौन्दर्य के लपेटे में देखना अधूरी बात है। अनिल यादव ने कंटकाकीर्ण मार्गों से गुज़रते हुए सूचना और ज्ञान, रोमांच और वृत्तांत, कहानी और पत्रकारिता शैली में इस अनूठे ट्रैवलॉग की रचना की है। वे लम्बी दूरी के होनहार लेखक हो सकते हैं।
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