Yah Hindi Ghazal Hai

  • Format:

यह हिन्दी ग़ज़ल है वरिष्ठ शायर नन्दलाल पाठक की ग़ज़ल की नयी पुस्तक है। इसमें शामिल ग़ज़लें दरवारों और महफ़िलों की शान बढ़ाने वाली नहीं, बल्कि आम जन-जीवन के सम्बन्धों, सरोकारों, स्वप्न और संघर्षों को अपनी ज़मीन पर अपनी ज़ुबाँ में व्यक्त करने वाली ग़ज़लें हैं। इसलिए ये सहज ही जिस तरह अपने मेयार के साथ आकर्षित करती हैं, उसी तरह ज़ेहन में चुपके-से ठहर जाती हैं ।\n\nइन ग़ज़लों का दायरा बहुत बड़ा है। ये घरों-परिवारों की बात करते अपना हर सुख-दुःख साझा करती हैं तो खेतों-खलिहानों के बीच अपने ख़ास जीवन-रागों में तब्दील हो जाती हैं। नदियों-पहाड़ों के सौन्दर्य की इमेज तो बनती ही हैं, उनके रूप-रंग-रस- गन्ध का एक अनदेखा अक्स भी रचती हैं। इश्क मजाज़ी हो या हक़ीक़ी उसे बेफ़िक्र फ़क़ीरी अन्दाज़ में क्या करती हैं। ये जब सड़कों-चौराहों पर चलती हैं तो ख़ाली मन, ख़ाली हाथ नहीं चलतीं, अपने समय-समाज से दो-चार होती हैं; विसंगतियों-विडम्बनाओं की शिनाख्त करती हैं; हक़ के ख़िलाफ़ जो, उससे पुरजोश सवाल भी करती हैं।\n\nये ऐसी ग़ज़लें हैं जिन्हें हिन्दी की खाँटी ग़ज़लें कह सकते हैं कि ये अरबी-फ़ारसी-उर्दू आदि भाषाओं के लफ़्ज़ों से लबरेज़ नहीं, बल्कि तत्सम और तद्भव शब्दों से अपनी काया को निर्मित करती हैं। और यही वजह कि ये क़रीब से ही नहीं, बहुत दूर से भी पहचानी जा सकती हैं।\n\n‘एक घटना नयी हो गयी/उम्र अब मुद्दई हो गयी' जैसे कई मारक शेर कहने वाले एक अनुभवी शायर की इस पुस्तक के बारे में बेलाग कह सकते हैं कि यह एक ऐसी हासिल मिसाल है, जिसमें पढ़ने वाले जीवन का खो चुका जो बहुत कुछ, भाषा में खो रहे जो बहुत कुछ, उन्हें ढूँढ़ने को जुनून ही नहीं, उत्स और मक़ाम भी पा सकते हैं।

नन्दलाल पाठक जन्म : 3 जुलाई 1929, औंरिहार, ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश। शिक्षा : बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय । अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, सोफिया कॉलेज, मुम्बई (1953-89) | विशेष : 'कारा' Conference on Asian Religions and Arts (CARA) के सदस्य के रूप में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के अधिवेशनों में सक्रिय महत्त्वपूर्ण योगदान । महाराष्ट्र प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष। सांस्कृतिक संस्था ‘शब्दम्' के न्यासी संस्थापक और उपाध्यक्ष | 'महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी' के कार्याध्यक्ष के रूप में हिन्दी सेवा (अवकाश प्राप्त)। प्रकाशन : धूप की छाँह -1975 युग का भावात्मक प्रतिविम्व; जहाँ पतझर नहीं होता - हिन्दी ग़ज़ल संग्रह; फिर हरी होगी धरा - कविता, ग़ज़ल और मुक्तक; ग़ज़लों ने लिखा मुझको - ग़ज़ल का भारतीयकरण करता और हिन्दी ग़ज़ल को नयी दिशा देता हुआ हिन्दी ग़ज़ल-संग्रह । भगवद्गीता : आधुनिक दृष्टि-भगवद्गीता और उसके रचनाकाल का ऐतिहासिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक धरातल प्रस्तुत करते हुए एक नवीन अध्ययन ।

नन्दलाल पाठक

Customer questions & answers

Add a review

Login to write a review.

Related products

Subscribe to Padhega India Newsletter!

Step into a world of stories, offers, and exclusive book buzz- right in your inbox! ✨

Subscribe to our newsletter today and never miss out on the magic of books, special deals, and insider updates. Let’s keep your reading journey inspired! 🌟