यह व्यंग्य कौ पन्थ... -\nसूर्यबाला बेहद बड़ी कहानीकार हैं और इतनी ही ज़िम्मेदारी तथा गम्भीरता से व्यंग्य भी रचती हैं। उनके लिए व्यंग्य लिखना भी उतनी ही बड़ी चुनौती रही है। जितनी बड़ी चुनौती एक अच्छी कथा की रचना। लेखिका ने जितनी मार्मिकता से मनुष्य मन की गहराइयों को उकेरा है उतने ही पैनेपन से व्यंग्य को भी तराशा है। वे व्यंग्य क्रम को उतनी ही समझदारी और गहनतम अध्ययन के साथ निभाती हैं। उनकी तैयारी पूरी होती है और व्यंग्य की सारी शर्तों को, अपनी ही शर्तों पर पूरा करनेवाली मौलिकता का दामन वे किसी भी व्यंग्य रचना में कभी नहीं छोड़ती।\nविषय चयन, चरित्र चित्रण तथा भाषा निर्वाह में सूर्यबाला का स्त्री होना उनको एक अलग ही क़िस्म का औज़ार देता है। उनके लेखन से गुज़रकर हमारा उस नये तरह के व्यंग्य से परिचय होता है जो एक सजग, सक्षम संवेदना से भरपूर तथा कलापूर्ण स्त्री की निगाहों से देखी गयी विसंगतिपूर्ण दुनिया का चित्र पेश करता है। व्यंग्य के परम्परागत विषय भी सूर्यबाला के क़लम के प्रकाश में एकदम नये आलोक में दिखाई देने लगते हैं। विशेष तौर पर, तथाकथित महिला विमर्श के चालाक स्वाँग को, लेखिकाओं का इसके झाँसे में आने को तथा स्वयं को लेखन में स्थापित करने के लिए इसका कुटिल इस्तेमाल करने को उन्होंने बेहद बारीकी तथा साफ़गोई से अपनी कई व्यंग्य रचनाओं में लिया है।\nसूर्यबाला व्यंग्य के किसी भी स्थापित पैटर्न को दुहराती नहीं। स्थापित पैटर्न से हमारा तात्पर्य यहाँ परसाई, शरदजोशी, त्यागी तथा श्रीलाल शुक्ल जी की तरह का लिखना या लिखने की कोशिश करना है।\nसूर्यबाला का व्यंग्य उनका अपना है और इस क़दर अपना है कि उस पर इन महान पूर्वजों की शैली या कहन की छाया भी नहीं है। वे अपना क़द अपनी छाया स्वयं बनाती हैं जो उनके व्यंग्य को अपने पाठक से सीधे जोड़ देता है। —ज्ञान चतुर्वेदी
25 अक्टूबर, 1943 को वाराणसी में जन्मीं और काशी विश्वविद्यालय में पीएच.डी. तक की शिक्षा पूर्ण करने वाली सूर्यबाला समकालीन कथा-लेखन में एक विशिष्ट और अलग अन्दाज के साथ उपस्थित हैं। यह अन्दाज मर्मज्ञ पाठकों के साथ उनकी आत्मीयता का है। जो दशक-दर-दशक निरन्तर प्रगाढ़ होती गयी है। धर्मयुग में धारावाहिक प्रकाशित होने वाला उनका पहला उपन्यास मेरे सन्धिपत्र आज भी पाठकों की चहेती कृति है तथा अब तक का अन्तिम उपन्यास कौन देस को वासी.... वेणु की डायरी अनवरत पाठकों की सराहना अर्जित कर रहा है। अपने छ: उपन्यास, ग्यारह कथा-संग्रह, चार व्यंग्य-संग्रह, तथा अलविदा अन्ना जैसी स्मृति-कथा और झगड़ा निपटारक दफ्तर शीर्षक बालहास्य उपन्यास की लेखिका सूर्यबाला, तमाम साहित्यिक उठापटको, विमर्शी घमासानों और बाज़ार की माँगों से निर्लिप्त रहकर चुपचाप लिखने वाली रचनाकार हैं। वैचारिक गहनता के बीचोंबीच सहज संवेदना की पगडणडी बना ले जाने में सूर्यबाला की कहानियाँ बेजोड़ हैं। जीवन के जटिल और बौद्धिक पक्षों को भी नितान्त खिलन्दड़े अन्दाज में बयान करती उनकी कहानियाँ अपनी मार्मिकता पर भी आँच नहीं आने देतीं। उपन्यास : मेरे सन्धिपत्र, सुबह के इन्तज़ार तक, अग्निपंखी, दीक्षान्त, यामिनी कथा तथा कौन देस को वासी..... वेणु की डायरी। कहानियाँ : एक इन्द्रधनुष जुबेदा के नाम, दिशाहीन, थाली भर चाँद, मुँडेर पर, गृहप्रवेश, साँझवाती, कात्यायनी संवाद, इक्कीस कहानियाँ, पाँच लम्बी कहानियाँ, मानुष- गन्ध, गौरा गुनवन्ती। व्यंग्य : अजगर करे न चाकरी, धृतराष्ट्र टाइम्स, देश सेवा के अखाड़े में, भगवान ने कहा था, पत्नी और पुरस्कार, मेरी प्रिय व्यंग्य रचनाएँ, यह व्यंग्य कौ पन्थ। संस्मरण : अलविदा अन्ना (स्मृति-कथा), झगड़ा निपटारक दफ्तर (बाल हास्य उपन्यास)। अंग्रेज़ी में अनूदित कथा संग्रह : द गर्ल विद् अनशेड टियर्स। अनेक कहानियों एवं व्यंग्य रचनाओं का रूपान्तर टी.वी. धारावाहिकों के माध्यम से प्रस्तुत एक वर्ष तक जनसत्ता के साप्ताहिक परिशिष्ट में 'वामा' शीर्षक पाक्षिक स्तम्भ का लेखन। इंडियन क्लासिक श्रृंखला (प्रसार भारती) के अन्तर्गत 2007 में 'सजायाफ्ता' कहानी पर बनी टेलीफ़िल्म को दो पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ टेलीफिल्म एवं निर्देशन), जीवन्ती फाउंडेशन (मुम्बई), सूत्रधार (इन्दौर) तथा राइटर्स एसोसिएशन मुम्बई द्वारा लेखिका सूर्यबाला के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित सम्पूर्ण कार्यक्रम एवं साक्षात्कार । सम्मान पुरस्कार : महाराष्ट्र साहित्य अकादमी का छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, भारती प्रसार-परिषद का भारती-गौरव सम्मान, महाराष्ट्र साहित्य हिन्दी अकादमी का सर्वोच्च जीवन-गौरव पुरस्कार, हरिवंश राय बच्चन साहित्य रत्न पुरस्कार, राष्ट्रीय शरद जोशी प्रतिष्ठा पुरस्कार, रवीन्द्रनाथ त्यागी शीर्ष सम्मान, अभियान संस्था द्वारा स्त्री शक्ति सम्मान एवं महाराष्ट्र दिवस पर राज्यपाल द्वारा राजभवन में सम्मानित, जे सी जोशी, शब्द साधक शिखर सम्मान, नयी धारा का उदयराज सिंह स्मृति शीर्ष सम्मान तथा उत्तर प्रदेश संस्थान का सर्वोच्च भारत-भारती पुरस्कार आदि से सम्मानित। सम्पर्क : बी-504, रूनवाल सेंटर, गोवंडी स्टेशन रोड, देवनार, चेम्बूर, मुम्बई-400088
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