ये आकाश मेरा भी है -\n\nनाटक साहित्य श्रृंखला की महत्त्वपूर्ण विधा है। धारावाहिक नाटक ये आकाश मेरा भी है की इस कृति में प्रबुद्ध लेखक डॉ. रमेश चन्द्र गुप्ता ने समाज में व्याप्त विद्रूपताओं का विश्लेषण रोचक ढंग से स्थापित करते हुए सुसंस्कारों की पुनर्स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। साथ ही भ्रूण हत्या, बेटियों के साथ होने वाले भेदभाव की इस जीवन संस्कृति की अवनति के निराकरण का परिवारोपयोगी एवं समाजोपयोगी स्तुत्य समाधान प्रस्तुत किया है। कथावस्तु की रोचकता, भाषा की सहजता-सरलता, मनोहारी दृश्यों की योजना रंगमंच की दृष्टि से उच्चकोटि की हैं।\n\nसामाजिक समस्याओं की विविधता, सहृदयता का सामंजस्य, रस संचार, बौद्धिक संघर्ष आदि का मनोवैज्ञानिक चित्रण नाटक की विशेषता है। साथ ही नाटक में सरसता, उत्सुकता, स्वाभाविकता एवं काव्यात्मकता का अनूठा सौन्दर्य परिलक्षित है।\n\nयह श्रेष्ठ साहित्यिक धारावाहिक नाटक रेडियो के साथ मंचानुकूल भी है तथा यह नाट्यकला का आदर्श प्रस्तुत करता है।\n\n- डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा 'अरुण'\n\nवरिष्ठ साहित्यकार, पूर्व प्राचार्य एवं\n\nपूर्व सदस्य साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली\n\n܀܀܀\n\nजीवन के लगभग हरेक क्षेत्र में आज नारी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही हैं। एक तरफ अगर वो ममतामयी माँ है, प्यारी बहन हैं, प्यारी बिटिया है, सुघड़ गृहिणी है, तो दूसरी तरफ वो अपने अद्भुत आत्मबल और अपनी विलक्षण प्रतिभाओं से संसार को चमत्कृत कर रही है। नारी की तस्वीर आज पूर्णतः बदली हुई है और नारी की इस बदली हुई तस्वीर ने नारी के प्रति समाज की घिसी-पिटी सोच को बदला है। किन्तु विडम्बना यह भी है कि आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग नारी के प्रति अपनी सोच को नहीं बदल पाया है। परिवार में नारी का जन्म लेना आज भी समाज के इस वर्ग को हीन भावना से ग्रस्त कर देता है। ऐसे समाज में जन्म ले अपनी उम्र के विभिन्न पड़ावों को पार करती एक महिला अपने अस्तित्व, अपने सम्मान और अपनी अस्मिता को लेकर हमेशा अनेकानेक शंकाओं से घिरी रहती है।\n\nनित नयी समस्याओं से दो-चार होती, लेकिन अपने अपराजेय आत्मबल और अपने अटूट आत्म-विश्वास के रहते वह फिर भी अपने जीवन में आने वाली हरेक समस्या का समाधान ढूँढ़ ही लेती है। लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉक्टर रमेश चन्द्र गुप्ता 'मिलन' की सशक्त लेखनी से निकला सशक्त धारावाहिक ये आकाश मेरा भी है ना केवल दोगले समाज में महिलाओं की परिस्थिति के चित्र हमारे सामने रखता है, बल्कि महिलाओं को अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए निर्भय भी बनाता है। डॉक्टर रमेश चन्द्र गुप्ता 'मिलन' जी को इस सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई !...\n\n- नंदन शर्मा\n\nटेलिविज़न प्रोग्राम्स के लेखक,\n\nनिर्माता और निर्देशक
डॉ. रमेश चन्द्र गुप्ता - (साहित्यिक नाम - डॉ. रमेश मिलन) प्रबुद्ध साहित्यकार, कवि एवं शिक्षाविद् साहित्यिक विधा : कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास एवं बाल साहित्य । पुरस्कार एवं सम्मान : एन.सी.ई.आर.टी. नयी दिल्ली: सोने की मछली कृति पर बाल साहित्य का 'सर्वोत्कृष्ट कृति' (1986-87) राष्ट्रीय पुरस्कार; महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी : 'काका कालेलकर पुरस्कार'; हिन्दी अकादमी दिल्ली: राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में योगदान हेतु सम्मानित; भारतीय वाड्.मय पीठ कोलकाता : 'कवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सम्मान' ; विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ: 'राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान'; देश की अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से पुरस्कृत एवं सम्मानित । प्रसारण एवं प्रकाशन : दूरदर्शन नयी दिल्ली से हास्य-व्यंग्य धारावाहिक नाटिका 'बात इतनी सी है', रचनाओं एवं बाल नाटकों का प्रसारण। आकाशवाणी नयी दिल्ली, मुम्बई, पुणे से कहानियों, कविताओं, नाटकों एवं बाल साहित्य की रचनाओं का अनवरत प्रसारण। डेढ़ दर्जन से अधिक साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित । विशेष : महाराष्ट्र, कर्नाटक राज्यों एवं दिल्ली के निजी विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में रचनाओं का समावेश । मराठी एवं तमिल भाषाओं में कृतियों का अनुवाद तथा प्रकाशन । दक्षिण भारत के त्रिरुनलवैली (तमिलनाडु) विश्वविद्यालय से 'अपराजिता' कृति पर शोधार्थी एम.फिल. से अलंकृत । सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन, मुम्बई से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका 'आसरा मुक्तांगन' के प्रधान सम्पादक । सम्पर्क : 9029784346, 8983531636 ई-मेल : gauravgr@gmail.com; dr.rmilan@gmail.com
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