ये जगह धड़कती है - ओम प्रभाकर की ख़ूबी ये है कि वे ग़ज़ल में नयी बात कहते हैं। ओम प्रभाकर की ग़ज़लें देखकर तअज्जुब हुआ कि नयी-नयी उर्दू सीखने वाला और टेढ़े-मेढ़े हरूफ़ में उर्दू लिखने वाला ये शायर न सिर्फ़ कि बहर, क़ाफ़िया और रदीफ़ के लिहाज़ से सही शे'र कहता है, बल्कि ये कि ज़ुबान और मुहावरे के एतवार से भी इसकी ग़ज़ल कमोबेश दुरुस्त होती हैं। ज़ाहिर है कि ये ख़ूबियाँ नहीं बुनियादी ज़रूरतें हैं। लिहाज़ा पहली बात जिसने मुझे प्रभावित किया वो ये थी कि ओम प्रभाकर के पास ज़रूरी सामान तो था ही, वो इस सामान को बख़ूबी बरतने का सलीका भी रखते थे, यानी इस मामूली सीमेंट, लोहा, लकड़ी से जो कमरे, दालान और गलियारे उन्होंने बनाये थे उनमें कुछ-कुछ नयी तरह की रोशनी झलकती हुई और कुछ नयी तरह की हवा बहती हुई महसूस होती थी। ओम प्रभाकर की ग़ज़ल में जो बेतक़ल्लुफ़ी का लहज़ा और एक तरह की साफ़गोई का अन्दाज़ है, उसे तो वे शायद हिन्दी से लेकर आये हैं, लेकिन इसके अलावा जो भी है वो उनका अपना है; और उसकी पहली विशेषता ये है कि वो ग़ज़ल के लहजे में शे'र कहते हैं, लेकिन मज़मून वो लाते हैं जो आमतौर पर ग़ज़ल में नहीं बरता जाता। ये बहुत बड़ी बात है और ये ऐसा इम्तिहान है जिसमें ग़ज़लगो शायर नाकाम रहते हैं। उम्मीद है कि वो बहुत दिनों तक बाग़े-उर्दू को गुलज़ार करते रहेंगे। —शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी
ओम प्रभाकर - 5 अगस्त, 1941 को जनमे ओम प्रभाकर पीएच. डी. तक शिक्षा प्राप्त हैं। शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं शोध केन्द्र, भिंड (म.प्र.) में हिन्दी के प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे। बाद में जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर के डीन ऑफ़ फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स नियुक्त हुए। प्रकाशित कृतियाँ: 'पुष्पचरित', 'कंकालराग', 'काले अक्षर भारतीय कविताएँ' (कविता): 'एक परत उखड़ी माटी' (कहानी); 'तिनके में आशियाना' (उर्दू ग़ज़लों का मज्मुआ): 'अज्ञेय का कथा साहित्य', 'कथाकृती मोहन राकेश' (शोध समीक्षा); 'कविता-64' और 'शब्द' (सम्पादन)। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रमुखता से प्रकाशित। कुछ रचनाएँ उर्दू, बांग्ला, गुजराती, अंग्रेज़ी, पंजाबी, अरबी और ब्रेल लिपि में अनूदित। पुरस्कार/ सम्मान: 'पुष्पचरित' और 'बयान' पांडुलिपि म.प्र. साहित्य परिषद और उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत। वर्ष 2010-2011 के लिए म.प्र. उर्दू अकादमी द्वारा ग़ैर उर्दू शायर को दिया जाने वाला 'शम्भूदयाल सुख़न अवार्ड'।
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