महाराष्ट्र के एक साधारण देहात के किसान के अनपढ़ बेटे का सहसा बड़ौदा-नरेश बनकर स्वतंत्रता-पूर्व हिंदुस्तान की रियासतों के महाराजाओं का सरताज बन जाना और राजनीति, प्रशासन, समाजनीति तथा संस्कृति के क्षेत्रों में आधुनिकता के पदचिह्न छोड़ जाना किसी अद्भुत आयान से कम नहीं है। राजतंत्र को प्रजातंत्र में ढालने के लिए जनता को मताधिकार, ग्राम पंचायत की स्थापना, विधि का समाजीकरण, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, वाचनालय, ग्रंथमाला चलाना, पत्रकारिता, व्यायामशाला जैसी कई योजनाएँ चलाईं। अस्पृश्यता, बँधुआ मजदूरी, बाल-विवाह आदि के विरोध में समाज-सुधारकों का साथ दिया। राज्य में समृद्धि लाने के लिए भूमिसुधार, जलनीति, स्वास्थ्य, व्यवसाय-कौशल, आदिवासियों की सहायता आदि के द्वारा पारदर्शी प्रशासन का आदर्श उपस्थित किया। साहित्य, संगीत, चित्र, नृत्य आदि कलाओं को प्रोत्साहित किया। कई बार यूरोप जाकर आधुनिकता के रूपों की पहचान की और उसे अपनी रियासत में आजमाया। बड़ी बात यह कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरोध में आजादी के क्रांतिकारियों की हर तरह से सहायता की। दस्तावेजों के विपुल भंडार को खँगालकर बाबा भांड ने सयाजीराव महाराज गायकवाड़ के इस औपन्यासिक चरित्र को साकार करते हुए उनके पारिवारिक और आंतरिक भावजीवन का जो संवेदनशील जायजा लिया है, उससे ‘सयाजीराव गायकवाड़ महाराज’ का यह आयान जीवंत हो उठा है। —निशिकांत ठकार|
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