ज़िन्दगी मुसकरायी - 'ज़िन्दगी मुसकरायी' भारतीय जीवन शैली के अप्रतिम साधक कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' के ऐसे निबन्धों का मोहक संग्रह है, जो कहने को निबन्ध हैं, लेकिन वे संस्मरण भी हैं, कहानी भी हैं, अनुभव भी हैं, विचार भी हैं, उपदेश भी हैं और इन सबसे बढ़कर एक सहृदय, सत्पुरुष, हितैषी और प्रेमी मित्र की रसभरी बातें हैं जो हृदय से निकलकर पाठक के हृदय में समा जाती हैं। दूसरे शब्दों में, ये मन की मुरझाती तुलसी को उदासी से प्रसन्नता के, अवसाद से आह्लाद के, हताशा से उद्यम के, अकर्मण्यता से कर्मण्यता के और असफलता से सफलता के लहलहाते उपवन में लाकर रोप देते हैं।... 'ज़िन्दगी मुसकरायी' का लेखक भी उन्हीं में है, जो अत्यन्त साधारण और दमघोंटू परिस्थितियों में जन्म लेते हैं और सफल, आनन्दपूर्ण और विशिष्ट जीवन की ओर नहीं बढ़ पाते, पर लेखक उन बुरी परिस्थितियों में निराश नहीं हुआ और उसने 'साधारण व्यक्ति के लिए उत्तम जीवन की खोज' की। वही खोज इन पृष्ठों में है। पाठक भी इन पृष्ठों में अपने लिए अच्छे और सफल जीवन की खोज कर सकते हैं.....
कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - जन्म: 29 मई, 1906; निधन: 9 मई, 1995। हिन्दी के यशस्वी गद्य-लेखक, शैलीकार एवं पत्रकार स्व. 'प्रभाकर' जी की भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित बहुचर्चित कृतियाँ हैं—ज़िन्दगी मुसकरायी, माटी हो गयी सोना, आकाश के तारे धरती के फूल, क्षण बोले कण मुसकाये, महके आँगन चहके द्वार, दीप जले शंख बजे, ज़िन्दगी लहलहायी, बाजे पायलिया के घुँघरू, कारवाँ आगे बढ़े।
कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकरAdd a review
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