आत्मजयी - आत्मजयी ने हिन्दी साहित्य के मानक खंड-काव्य के रूप में अपनी एक ख़ास जगह बनायी है और यह अखिल भारतीय स्तर पर प्रशंसित एक असाधारण कृति है। आत्मजयी का मूल कथासूत्र कठोपनिषद् में नचिकेता के प्रसंग पर आधारित है। इस आख्यान के पुराकथात्मक पक्ष को कवि ने आज के मनुष्य की जटिल मनःस्थितियों को एक बेहतर अभिव्यक्ति देने का अपूर्व साधन बनाया है। आत्मजयी मूलतः मनुष्य की रचनात्मक सामर्थ्य में आस्था की पुनःप्राप्ति की कहानी है। इसमें आधुनिक मनुष्य की जटिल नियति से एक गहरा काव्यात्मक साक्षात्कार है—कवि ने जिन समस्याओं और प्रश्नों से मुठभेड़ की है उनका सार्वत्रिक महत्त्व है।
कुँवर नारायण - कवि-चिन्तक कुँवर नारायण (1927-2017) ने छह दशकों तक फैले अपने लेखन में अध्ययन की व्यापकता, सरोकारों की विविधता और भाषा के सौन्दर्य बोध के कारण रचना और जीवन-दृष्टि को निरन्तर समृद्ध किया है। उनकी रचनाएँ वर्तमान इतिहास, समकाल-पुराकाल, राजनीति समाज, परिवार व्यक्ति, मानवता-नैतिकता के दुहरे आयामों को समेटती हैं। एक दुर्लभ संवेदनशीलता के चलते उन्होंने साहित्य की कई परम्पराओं के साथ जीवन्त संवाद कायम किया है। उनकी सृजनशील उपस्थिति हिन्दी समाज के लिए गहरी आश्वस्ति का विषय है। कुँवर नारायण मुख्यत: कवि हैं किन्तु साहित्य की दूसरी विधाओं में भी निरन्तर लिखते रहे हैं। अब तक कविता की उनकी दस पुस्तकों के अलावा चार आलोचना, एक कहानी-संग्रह, एक डायरी, दो साक्षात्कार और रचनाओं पर केन्द्रित छह संचयन प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक कृतियों के भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। उन्हें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार', 'पद्मभूषण', रोम का 'प्रीमिओ फ़ेरोनिआ' और साहित्य अकादेमी की 'महत्तर सदस्यता' जैसे महत्त्वपूर्ण सम्मान मिल चुके हैं।
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