अविनश्वर - शायद यह सही है कि आशापूर्णा देवी की अधिकांश रचनाओं के केन्द्र में नारी चरित्र हैं, मगर उनकी रचनाएँ केवल इसी विषय पर केन्द्रित नहीं हैं। मनुष्य की तमाम बहुरंगी आकृतियों और उसकी ख़ूबियों-कमियों को उन्होंने अपनी कृतियों में जीवन्त और आत्मीय ढंग से उकेरा है। अपने लगभग सभी उपन्यासों के माध्यम से मानवीय चरित्रों का गम्भीर मनोविश्लेषण करते हुए आशापूर्णा देवी ने अपने समय और समाज के यथार्थ को पूरी क्षमता से प्रतिबिम्बित किया है। उनका यह उपन्यास 'अविनश्वर' भी इसका प्रमाण है। ‘अविनश्वर' में अपने अतीत की सुनहरी यादों में डूबे ज़मींदार राजाबहादुर शशिशेखर और उनके मन में रची-बसी प्रियतमा सुधाहासिनी की मनोहारी प्रेम कथा है। सामान्य प्रेम-कथाओं से अलग यह एक ऐसी व्यथा-कथा है, जो दैहिक और सांसारिक उपलब्धियों के पार अलौकिक इन्द्रधनुषी अनुभूतियों का साक्षात्कार कराती है।.... ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की महान कथाकार आशापूर्णा देवी के इस अनूदित उपन्यास ‘अविनश्वर' ने भी उनके अन्य उपन्यासों की तरह हिन्दी पाठकों की भरपूर प्रशंसा पायी है।

आशापूर्णा देवी - (1909-1996) बंकिमचन्द्र, रवीन्द्रनाथ और शरतचन्द्र के बाद बांग्ला साहित्य-लोक में प्रतिष्ठित नाम। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनकी रचनाएँ हैं—सुवर्णलता, बकुलकथा, प्रारब्ध, लीला चिरन्तन, दृश्य से दृश्यान्तर, न जाने कहाँ कहाँ और अविनश्वर (उपन्यास); किर्चियाँ एवं ये जीवन है (कहानी-संग्रह)। 'ज्ञानपीठ पुरस्कार', कलकत्ता विश्वविद्यालय के 'भुवन मोहिनी स्मृति पदक' और 'रवीन्द्र पुरस्कार' से सम्मानित तथा भारत सरकार द्वारा 'पद्मश्री' से विभूषित।

आशापूर्णा देवी अनुवाद गीतालि भट्टाचार्य

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