‘मन आनम' एक कालजयी पुस्तक है। इस पुस्तक में फ़िराक़ गोरखपुरी तथा मुहम्मद तुफ़ैल की ख़तो-किताबत है। फ़िराक़ के प्रशंसकों के लिए यह एक संग्रहणीय तोहफ़ा है।\nये ख़त जो आपके सामने हैं, इन्हें मुरत्तब करने में मुझे बड़ी दिक्कतें पेश आईं। इसलिए कि 'फ़िराक़' साहिब को पहले-पहल ये इल्म न था कि ख़त छपेंगे भी, इसलिए उन्होंने अपने कलम को जैसे चाहा हँकाया। इससे जहाँ थोड़ी-बहुत बेराहरवी को जगह मिली, वहाँ पर उनके पुर-खुलूस और सच्चे जज़्बात भी उभर कर सामने आए। यूँ मैं समझता हूँ कि नुकसान कम, फाइदा ज़्यादा हुआ ।\nउनके कुछ ख़त अभी मैंने पेश नहीं किए, इसलिए कि उनमें कुछ ज़्यादा ही मुख़लिस और कुछ ज़्यादा ही सच्चे हो गए हैं-चूँकि ज़्यादा मुखलिस इंसान अपनी तमाम तर होश मंदी के बावजूद पागल और ज़्यादा सच्चा इंसान अपनी तमाम तर शराफ़त के बावजूद बदतमीज़ कहलाता है। इसीलिए मैंने कोशिश की है कि अपने इस प्यारे दोस्त को इन 'ख़राबियों' से बचा ले जाऊँ। इसके बावजूद 'फ़िराक़' इन ख़तों में हर तरह से और हर रंग में सामने आए हैं-यही 'फ़िराक़' की वो खूबी है जिस पर मस्लहत- आमेज़ शराफ़त के सारे गिलाफ़ निसार किए जा सकते हैं ।\nमैं इन ख़तों को अपनी और 'फ़िराक़' साहिब की जिंदगी में इसलिए छाप रहा हूँ ताकि कल-कलों को बुकरात क़िस्म का मुहक्किक ये साबित करने पर अपना वक़्त जाया न करे कि ये ख़त 'फ़िराक़' साहिब के लिखे हुए ही नहीं। इसलिए कि तुफ़ैल का इंतिकाल तो फलाँ सन् में हो गया था और ये ख़त उसके मरने के भी आठ बरस बाद 'हिज' नामी शख़्स ने लिखे थे।\n- मुहम्मद तुफैल
फ़िराक़ गोरखपुरी 1896: अगस्त 28, गोरखपुर में जन्म। 1913 : स्कूल लीविंग परीक्षा में उत्तीर्ण । 1915 : एफ.ए.। म्योर सेंट्रल कालेज, इलाहाबाद से। 1917 : जून 18: पिता मुंशी गोरखप्रसाद 'इवरत' का देहान्त । बी. ए. में प्रान्त भर में चौथा स्थान प्राप्त । प्रान्तीय सिविल सर्विस में डिप्टी कलक्ट्री के पद पर निर्वाचित । 1918 :स्वराज आन्दोलन शुरू होते ही सरकारी पदों का त्याग। 1920 : साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ । 1920 : दिसम्बर 6: प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन के विरुद्ध आन्दोलन में पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रस्ताव पर प्रान्तीय कांग्रेस के डिक्टेटर निर्वाचित। फिर स्वयं रफी अहमद किदवई के पक्ष में 'डिक्टेटरशिप' का त्याग दिसम्बर 13 डेढ़ बरस की कैद जेल में विशिष्ट साहित्यिक । रचनाएँ। 1922 : अखिल भारतीय कांग्रेस के 1927 तक 'अंडर सेक्रेट्री' । 1927 : क्रिश्चियन कालेज, लखनऊ में अध्यापक नियुक्त | 1928 : बी. एन. एस. डी. कालेज, कानपुर में अंग्रेजी और उर्दू के प्राध्यापक नियुक्त। 1930: आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी एम.ए. में प्रथम स्थान प्राप्त । बिना प्रार्थनापत्र दिए ही अपने मातृ- विद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक नियुक्त। इसी बीच उर्दू साहित्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति। 1959: विश्वविद्यालय से अवकाश । 1961 : उर्दू काव्य-संकलन 'गुले नग्मा' साहित्य अकादेमी एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत। 1965 : नेहरू-पुरस्कार प्राप्त। 1970 : साहित्य अकादेमी के 5वें सदस्य (फ़ेलो) निर्वाचित । 'गुले नग्मा' पर भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार । 1981 : गालिब अकादेमी अवार्ड। 1982 : नयी दिल्ली में निधन।
फ़िराक़ गोरखपुरीAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers