किसी संस्कृति का उद्भव एक अकस्मात् घटना न होकर एक सतत एवं अनवरत प्रक्रिया का परिणाम होता है। उद्भव के उपरान्त इसकी निरन्तरता अथवा इसका पराभव इस संस्कृति की वैचारिक जड़ों की गहराइयों पर निर्भर करता है। इसे धारण करने वाले व्यक्तियों के उपलब्ध विचार ही इन जड़ों की गहराई के आकलन का एक अकाट्य आधार हैं । देश-काल जनित विभिन्न परिस्थितियों में सहस्राब्दियों पुरानी सभ्यता के जनक और पोषक व्यक्तियों के विचारों के विस्तार की दशा-दिशा की समझ निश्चित रूप से हमारी संस्कृति एवं इसकी जड़ों के सन्दर्भ में हमारी समझ को और भी उन्नत बनाने का सामर्थ्य रखती है।
अञ्जेश बरनवाल का जन्म सन् 1973 में वैश्यकुल के एक व्यापारी परिवार में हुआ। गृह जनपद देवरिया में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त उनकी माध्यमिक शिक्षा उत्तराखण्ड व हरियाणा स्थित विद्यालयों में सम्पन्न हुई। स्नातक व परास्नातक स्तर की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से पूर्ण करने के उपरान्त सन् 1999 की उत्तर प्रदेश राज्य की सिविल सेवा परीक्षा में उनका चयन हुआ। परिणति स्वरूप सन् 2001 में उनका पदार्पण राजकीय सेवा में हो गया। इस जीवन-काल में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सम्पर्क में आए अनेक व्यक्तियों के प्रभाव के फलस्वरूप और देश-काल-जनित परिस्थितियों से प्रेरित होकर, अपने राजकीय दायित्वों के निर्वहन के साथ ही साथ, सन् 2020 में उन्होंने लेखनी उठाने का संकल्प लिया और आज एक लेखक के रूप में वे आपके समक्ष उपस्थित हैं।
Anjesh BaranwalAdd a review
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