निश्चय ही परिवार बालक की प्रथम पाठशाला होती है और माँ उसकी प्रथम शिक्षक। बच्चों को अच्छे संस्कार देने का दायित्व सबसे पहले तो माता-पिता को ही वहन करना होता है। लेकिन औपचारिक शिक्षा का अपना महत्त्व है। आज के इस प्रतिस्पर्धापूर्ण विश्व में तो औपचारिक शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ता जा रहा है। दुर्भाग्यवश हमारे देश में ऐसे बच्चों की संख्या बहुत अधिक है, जो स्कूल का मुझेहाँह भी नहीं देख पाते। बेटियों की स्थिति तो और भी बदतर है। बहुत से माता-पिता तो बेटियों को बेटों के समान शिक्षा के सुअवसर प्रदान करना निरर्थक समझते हैं। बेटा हो या बेटी, उन्हें स्कूल जाने की सुविधा प्रदान करना तो समाज का दायित्व है ही, उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित करना भी हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन बच्चों को स्कूल पहुँचाकर ही हमारा दायित्व पूरा नहीं हो जाता। हमें देखना होगा कि बच्चे सुशिक्षित होने के साथ-साथ सुसंस्कारित भी हों और देश एवं समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझें। अपने अधिकारों के प्रति सजग हों, लेकिन अपने कर्तव्यों की उपेक्षा कदापि न करें। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि उपदेशात्मक ढंग से गद्य में कही गई किसी बात के मुकाबले गीतात्मक ढंग से कही गई कोई बात बच्चों को सहज ही समझ में आ जाती है। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिशा में एक प्रयास है। बच्चों को शिक्षा देकर और समाज-राष्ट्र की प्रगति में सहभागी बनाने हेतु सार्थक पुस्तक।.
हेमंत ‘स्नेही’ जन्म: मुदा़फरा, जिला-गाजियाबाद (उ.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (राजनीतिशास्त्र), मेरठ कॉलेज (मेरठ विश्वविद्यालय)। पत्रकार जीवन की शुरुआत वर्ष 1975 में दिल्ली प्रेस से की। कालांतर में संवाद समिति ‘समाचार’ तथा हिंदुस्थान समाचार व समाचार-पत्र ‘दैनिक ट्रिब्यून’ में कार्य किया। नवभारत टाइम्स के उपसंपादक, मुख्य उपसंपादक, समाचार संपादक और रात्रि संपादक पदों पर कार्य करने के पश्चात् वर्ष 2009 से 2012 तक मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में निदेशक (जनसंपर्क) एवं अध्यक्ष, जनसंचार विभाग का दायित्व सँभाला। लगभग चार वर्ष स्वतंत्र लेखन में व्यस्त रहने के पश्चात् अक्तूबर 2016 से पुनः मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में निदेशक (जनसंपर्क) पद पर कार्यरत। बालोपयोगी कविताओं की चार पुस्तकें प्रकाशित। सन् 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित लोकप्रिय धारावाहिक ‘तारीख गवाह है’ का शीर्षक गीत लिखने का सुअवसर मिला।
Hemant ‘Snehi’Add a review
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