सूखते चिनार -\nवरिष्ठ लेखिका मधु कांकरिया ने अपने सृजन के लिए हमेशा अब तक अछूते रहे आये विषयों का चयन किया है। बावजूद गहन शोध के यह क़ाबिलेतारीफ़ है कि उनके यहाँ कथा-प्रवाह पूर्णतः अबाधित है।\n'सूखते चिनार' एक ऐसे युवक की कथा है जो परिवार से बग़ावत करके फ़ौज में सिर्फ़ इसलिए भर्ती हो जाता है कि उसने एक सुबह अख़बार में ‘नेशन नीड्स यू' का भावुक विज्ञापन पढ़ लिया था और उसने इस बात की क़सम खा ली कि 'सोल्जर आई एम बॉर्न, सोल्जर आई शैल डाई'। एक ऐसा मारवाड़ी युवक जिसके पुरखों के हाथों में सदा तराजू हुआ करता था,आज उसके हाथों में बन्दूक़ है। लाला के घर लेफ्टिनेंट। कलकत्ते के सुखद-गर्म बासे से कश्मीर के दुःखद-ठंडे बेस कैम्प तक।\nफ़ौजी जीवन की तमाम त्रासदियों को ज़मीनी स्तर पर रू-ब-रू करता यह उपन्यास पाठकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। मेजर संदीप, कर्नल आप्टे, बाबा हरभजन सिंह जैसे किरदार उस कश्मकश को साक्षात् करते हैं जो राष्ट्र और फ़ौजी के अन्तःसम्बन्धों में गुम्फित है। एक फ़ौजी को घुट्टी में ही पिलाया जाता है कि स्व को समूह में विसर्जित करे— इस उपन्यास के पृष्ठ-दर-पृष्ठ पर स्व से समूह तक के विसर्जन की यात्रा फैली हुई है।\nनितान्त रोचक पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास स्वागतयोग्य है।— कुणाल सिंह
मधु कांकरिया - जन्म: 23 मार्च, 1957। शिक्षा: एम.ए. (अर्थशास्त्र), कम्प्यूटर विज्ञान में डिप्लोमा। प्रकाशित कृतियाँ —— उपन्यास : खुले गगन के लाल सितारे, सलाम आख़िरी, पत्ता खोर, सेज पर संस्कृत, सूखते चिनार; कहानी-संग्रह: बीतते हुए, और अन्त में ईसु, चिड़िया ऐसे मरती है, भरी दोपहरी के अँधेरे (प्रतिनिधि कहानियाँ); सामाजिक विमर्श: अपनी धरती अपने लोग। 'रहना नहीं देश विराना है' पर प्रसार भारती द्वारा टेलीफ़िल्म का निर्माण । सम्मान: कथाक्रम पुरस्कार (2008), विजय वर्मा कथा सम्मान (2012), हेमचन्द्र स्मृति साहित्य सम्मान (2009), अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच द्वारा समाज गौरव सम्मान (2009)।
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