तैयार रहो मेरी आत्मा - \nसमकालीन भारतीय कविता के मूर्धन्य रचनाकारों के बीच प्रतिष्ठित, ओड़िया के अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवि रमाकान्त रथ की प्रतिनिधि कविताओं का यह संग्रह 'तैयार रहो मेरी आत्मा' काव्य-प्रेमी पाठकों के लिए एक प्रीतिकर उपलब्धि होगी। यह संग्रह जहाँ उनकी अब तक की काव्य-यात्रा का एक जीवन्त दस्तावेज़ है, वहीं काल और परिवेश के सन्दर्भ में आज की कविता के सरोकार को भी यह पूरी शक्ति और आत्मीयता के साथ रेखांकित करता है।\nरमाकान्त रथ सही अर्थों में एक बड़े कवि हैं— भाषा और कथ्य दोनों ही दृष्टियों से उन्होंने अपनी कविताओं के ज़रिये रचना और संवेदना को एक विराट् फलक पर यथार्थ से जोड़ने की सार्थक कोशिश की है। गहरी मानवीय अनुभूतियों को बेजोड़ अभिव्यक्ति देनेवाले रमाकान्त रथ के इस संग्रह की कविताएँ खरा प्रमाण हैं कि उनकी सम्पूर्ण कविता-यात्रा अपने हर पड़ाव पर मनुष्य को बचाये और बनाये रखने के लिए निरन्तर सक्रिय रही है। कहना न होगा कि सहज सम्प्रेषणीयता, जीवन-सौन्दर्य, अनुभवों की विविधता और विस्तार तथा गहरे सामाजिक यथार्थ के बहुआयामी संवेदनात्मक चित्र रमाकान्त जी की कविताओं में मौजूद हैं।
रमाकान्त रथ - जन्म 30 दिसम्बर, 1934 को पुरी के निकट एक गाँव में। शिक्षा गाँव के स्कूल के अलावा रावेंशा कॉलेज, कटक में। 1957 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से सम्बद्ध होकर भारत सरकार और उड़ीसा प्रदेश सरकार में सचिव एवं मुख्य सचिव सहित अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर 1992 तक कार्यरत रहे। साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1978), सरस्वती सम्मान, सारला पुरस्कार आदि राष्ट्रीय महत्त्व के पुरस्कारों से सम्मानित। 'श्रीराधा' (खण्डकाव्य, भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित) सहित अब तक आठ काव्य-पुस्तकें प्रकाशित। देश-विदेश की अनेक भाषाओं में रचनाएँ अनूदित।
रमाकांत रथAdd a review
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