वाल्मीकि कथा - \nआदिकवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' मानवता की एक अमर थाती है। वाल्मीकि की लेखनी से रामकथा की जो सरिता निःसृत हुई वह सदियों से निरन्तर प्रवाहित हो रही है। इससे प्रेरणा लेकर देश-विदेश में प्राचीन काल से ही अनेक भाषाओं में सैकड़ों साहित्यिक रचनाएँ रची जाती रही हैं। यह क्रम वर्तमान में भी जारी है। किन्तु देश और काल के अनुसार रामकथा के चरित्रों, मूल कथा एवं कथा की प्रस्तुति में भी पर्याप्त परिवर्तन हुए हैं। यह जानना रोचक होगा कि वाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत रामायण के पात्रों के चरित्र में सदियों को इस यात्रा में कैसे-कैसे परिवर्तन हुये हैं। इस ग्रन्थ में यह प्रयास किया गया है कि वाल्मीकि को आधार रूप में प्रस्तुत करते हुए रामकथा सम्बन्धित अन्य साहित्यिक कृतियों द्वारा किये गये चरित्र चित्रणों को तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाये ताकि हम मूल रामायण के साथ-साथ अन्य रामकथाओं की झाँकी भी एक साथ देख सकें। यह एक शोधपरक साहित्यिक कृति है।\nवस्तुतः रामायण केवल राम कथा मात्र नहीं है वरन् इसमें भारतीय संस्कृति और धर्म के उद्दात लक्षणों का भी समावेश है। इससे हम अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति, उच्च मूल्य एवं साहित्य की भव्यता से भी परिचित होते हैं। नयी और पुरानी दोनों पीढ़ियों के लिये रामायण को जानना आवश्यक है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि लोक में तुलसी के रामचरितमानस के पात्र ही अत्याधिक रचे बसे हैं या फिर देशज रचनाएँ अपने-अपने क्षेत्र में लोकप्रिय है। आज बहुत कम लोग आदिकवि की रामायण से परिचित हैं। किन्तु वाल्मीकि रामायण संसार के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थों में एक है। इस ग्रन्थ के केन्द्रीय भाव को संरक्षित रखते हुए अन्य रामकथाओं को आम लोगों तक पहुँचाना इस ग्रन्थ का प्रयास है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये विभिन्न रामकथाओं का स्थान-स्थान पर उल्लेख करते हुये 'रामायण' के पात्रों का एवं परिवर्तित कथा-सामग्री का विश्लेषणात्मक चित्रण इस ग्रन्थ में किया गया है।
डॉ. शोभा निगम - डॉ. निगम 1970 में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए एम.ए. की उपाधि तथा इसी विश्वविद्यालय से सन् 1980 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। सन् 1973 में आप छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र की व्याख्याता नियुक्त हुई। तब से 2008 तक आपने लगातार दर्शनशास्त्र का, क़रीब 35 साल तक, अध्यापन किया है। इस बीच वे इसी महाविद्यालय में रहते हुए प्रोफ़ेसर भी बनी और फिर शासकीय महाविद्यालय आरंग में प्राचार्य पद का दायित्व निर्वहन करते हुए सन् 2010 में सेवानिवृत हुई हैं। श्रीमती निगम द्वारा दर्शन एवं धर्म विषय पर अनेकों शोधपत्र एवं लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे हैं। इनकी अब तक 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रकाशित पुस्तकें: पाश्चात्य दर्शन के सम्प्रदाय, श्रीमद्वाल्लभाचार्य : उनका शुद्धाद्वैत एवं पुष्टिमार्ग, आधुनिक पाश्चात्य दर्शन, भारतीय दर्शन, सुकरात : एक महात्मा सन्त सेन, स्वप्नभंग (कथा संग्रह) व्यास कथा, सलीब पर टंगा एक मसीहा : ईसा, शक्तिशाली विचार करें सपने साकार, श्रेष्ठ जातक कथाएँ। सम्मान: डालमिया पुरस्कार, 1983, श्रीमद्वल्लभाचार्य : उनका शुद्धाद्वैत एवं पुष्टिमार्ग, वागीश्वरी पुरस्कार, 1992, सुकरात : एक महात्मा।
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