यादों के गलियारे में - \n'यादों के गलियारे में' प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल' का नवीनतम संकलन है। ये उर्दू के शायर और हिन्दी के कवि भी हैं। स्वभावत: इस संकलन के चार खण्ड हैं, जिनमें क्रमशः उनकी ग़ज़लें, कविताएँ तथा नज़्में, ख़यालों के कुछ टुकड़े और बाई जूई से बातचीत की एक श्रृंखला दी गयी है। मेरी दृष्टि में चारों खण्डों में सबसे महत्त्वपूर्ण खण्ड पहला है, जिसमें वास्तविक स्थितियों से परिचित करानेवाली अनेक ग़ज़लें हैं।\n'ख़याल' की ग़ज़लों के कई संग्रह प्रकाशित हैं। ग़ज़लों में वे उनके अनुशासन का पूरा निर्वाह करते हैं, यानी उनकी ग़ज़ल का प्रत्येक शेर आज़ाद होता है। बाई जूई 8वीं-9वीं शताब्दी के चीन के कवि थे, जिन्होंने असंख्य कविताएँ लिखीं। उनकी कविताएँ ऐसी हैं कि उनको पढ़ने पर लगता है कि ये आज की लिखी हुई हैं। एक तरफ़ भरपूर रचनात्मकता और दूसरी तरफ़ घनघोर ताज़गी। स्पष्ट है कि वे अपने ज़माने से बहुत आगे थे। 'ख़याल' ने संकलन के अन्तिम खण्ड में उन्हीं से बातचीत करते हुए अनेक प्रसंगों पर अनेक कविताएँ लिखी हैं, जो परम्परागत ढंग की न होकर अनेकानेक स्थितियों और प्रसंगों को समेटे हुए हैं। 'अगली पीढ़ी के कष्ट' शीर्षक कविता के अन्तिम बन्द की अन्तिम पंक्ति में 'ख़याल' ने जो व्यंग्य किया है, वह बिल्कुल सटीक है। प्रमाण यह कि 'बेहद आज़ादी' का फल आज सम्पूर्ण भारत की जनता भुगत रही है। निस्सन्देह 'ख़याल' साहब इस संकलन के लिए बधाई के पात्र हैं।—नंदकिशोर नवल
प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल' - 9वीं शताब्दी चीन के कालजयी कवि बाई जूई की 200 कविताओं के बहुचर्चित हिन्दी अनुवादक प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल' की ग़ज़लों, नज़्मों और कविताओं के छः संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। 'ख़याल' ने नोबेल विजेता ओरहान पामुक के उपन्यास 'स्नो' का हिन्दी अनुवाद भी किया है, जो पेंगुइन (इंडिया) से प्रकाशित है। प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल' का जन्म 1946 में हुआ, और वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा में लगभग 40 वर्षों तक कार्यरत रहने के बाद भारत सरकार में सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए। अब वे पूर्णकालिक रूप से लेखन और अनुवाद कार्य को समर्पित हैं। 'ख़याल' उर्दू के जाने-माने वेबसाइट रेख़्ता डॉट ऑर्ग में सम्मिलित शायर हैं, और उनकी ग़ज़लें स्व. जगजीत सिंह, उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, डॉ. सुमन यादव आदि ख्याति प्राप्त गायकों ने गायी हैं। 'यादों के गलियारे में' 'ख़याल' की 2005 से 2015 के बीच लिखी ग़ज़लों, नज़्मों और कविताओं का संकलन है।
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