ज़िन्दगी और गुलाब के फूल - कहानी के क्षेत्र में आज भी एक से बढ़कर एक नशीले से और उलझावदार प्रयोग चल रहे हैं। कभी-कभी तो पाठक सोचने तक लगता है कि कहानी के नाम जो उसे मिलता है वह कहाँ तक कहानी है और कहाँ तक कला। ऐसे परिवेश में 'ज़िन्दगी और गुलाब के फूल' संग्रह की कहानियाँ सवेरे की ताज़ी हवा का झोंका-सा लगेंगी। प्रख्यात हिन्दी कहानीकार उषा प्रियंवदा की ये कहानियाँ पाठक को न केवल शैली-शिल्प के गोरखधन्धों से मुक्त रखती हैं बल्कि विचार-भावनाओं के अस्वाभाविक और अस्वास्थ्यकर उन्मादों से भी बचा ले जाती हैं।—और विशेष बात यह कि फिर भी ये कहानियाँ सभी अर्थों में जीवन्त हैं, बिल्कुल आज की हैं, आज के मन और आज के जीवन की हैं। प्रस्तुत है 'ज़िन्दगी और गुलाब के फूल' का नया संस्करण।
उषा प्रियंवदा - जन्म: 24 दिसम्बर, 1930 को कानपुर में। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए., वहीं से पीएच.डी.। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापन के बाद अमेरिका में ब्लूमिंगटन इंडियाना विश्वविद्यालय में शोध। बाद में विस्कांसिन विश्वविद्यालय, मैडीसन में दक्षिणेशियाई विभाग की प्रोफ़ेसर। प्रकाशित रचनाएँ: 'ज़िन्दगी और गुलाब के फूल', 'एक कोई दूसरा' और 'मेरी प्रिय कहानियाँ' (कहानी-संग्रह); 'पचपन खम्भे लाल दीवारें', ‘रुकोगी नहीं राधिका' और 'शेष यात्रा' (उपन्यास); अनेक कृतियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद। देश-विदेश के विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के निमन्त्रण पर संगोष्ठियों में भागीदारी।
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